प्रदूषण में कमी के बावजूद लॉकडाउन के दौरान दिल्ली की वायु गुणवत्ता रही सामान्य स्तर से अधिक: TERI
रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान बॉयोमास के जलने और उद्योगों जैसे क्षेत्रीय स्रोतों ने दिल्ली के वायु प्रदूषण में अपना योगदान दिया।
नई दिल्ली, 02 फरवरी, 2021: लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में CPCB के 32 मॉनिटरिंग स्टेशनों के सांख्यिकीय विश्लेषण बताते हैं कि साल 2020 में पिछले साल के मुक़ाबले पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (PM2.5) में 43 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) में 61 फीसदी की कमी हुई है। ये गिरावट दिल्ली के वायुमंडल में हवा की रफ़्तार कम होने के बावजूद दर्ज की गई है।
हालांकि टेरी की ओर से 45 दिनों की निगरानी अवधि के दौरान दिल्ली में लोधी रोड, पटेल नगर और लक्ष्मी नगर में अपने तीन मॉनिटरिंग स्टेशनों में किए गए विशेष वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग अध्ययन में पता चला कि PM 2.5 and NOx के स्तर में उल्लेखनीय कमी तो आई है। लेकिन वायुमंडल में PM 2.5 की मात्रा इन तीनों स्टेशनों में 31-60 फीसदी निगरानी दिनों में अपने सामान्य दैनिक स्तर को पार करती रही।
यह टेरी की ओर से आज ‘असेसमेंट ऑफ़ एयर क्वालिटी ड्यूरिंग लॉकडाउन इन दिल्ली’ शीर्षक से जारी की गई रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्षों में से एक है। यह रिपोर्ट ब्लूमबर्ग फिलॉन्थ्रीपीज के सहयोग से तैयार की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण स्थानीय स्तर पर वाहनों की आवाजाही पर रोक लगने और कई उद्योगों के कामकाज के साथ-साथ निर्माण गतिविधियों के बंद होने
के बावजूद, "अपविन्ड स्थानों से आने वाली हवाओं के चलते लॉकडाउन के दौरान भी दिल्ली में कई दिनों तक प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानकों से ऊपर रहा।"
दिल्ली में PM 2.5 के सामान्य स्तर से अधिक रहने का मुख्य कारण बायोमास को जलाना बताया गया है. इसमें भी अधिकांश जगहों पर खेतों में गेहूं के अवशेष और रसोई में लकड़ी के जलने से इसके स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है। दिल्ली में लॉकडाउन के दौरान उद्योगों से होने वाले क्षेत्रीय स्तर के प्रदूषण ने भी PM 2.5 के स्तर को बढ़ाने में मुख्य योगदान दिया है।
इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए एक एयरशेड आधारित दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता है।
इस मौके पर टेरी के महानिदेशक डॉ अजय माथुर ने कहा, ''जब तक हम क्षेत्रीय स्रोतों को समान और अधिक तीव्रता से नहीं सुलझाएंगे तब तक हम दिल्ली में वायु गुणवत्ता के मानकों को प्राप्त नहीं कर सकते। इसमें राज्य सरकार को साथ आने और योगदान देने की जरुरत है। ”
अर्थ साइंस एंड क्लाइमेट चेंज डिवीजन के निदेशक डॉ सुमित शर्मा ने कहा, लॉकडाउन के और गर्मियों में मौसम के हानिकारक प्रदूषकों के वायुमंडल में दूर-दूर फैले होने के बावजूद अधिकांश दिनों में प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से कहीं अधिक था. केवल शहर स्तर की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं होगा, हमें भारत में क्षेत्रीय स्तर की वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाओं की तैयारी और कार्यान्वयन शुरू करना होगा। ”
इस रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों का सारांश इस प्रकार है-
- साल 2019 की तुलना में लॉकडाउन के दौरान PM 2.5 and NOx जैसे हानिकारक वायु प्रदूषकों के स्तर में क्रमशः 43 फीसदी और 61 फीसदी की कमी देखी गयी।
- 22 अप्रैल से 5 जून तक आईएचसी, लक्ष्मी नगर और पटेल नगर में विशेष निगरानी की गई। लॉकडाउन के बावजूद, PM 2.5 के स्तर ने इन तीनों स्थानों पर सामान्य दैनिक मानक का क्रमशः 60 फीसदी, 47 फीसदी और 31 फीसदी बार उल्लंघन किया।
- प्रदूषण में वाहनों का योगदान कम पाया गया। लेकिन बॉयोमास और औद्योगिक गतिविधियों का योगदान अधिक पाया गया। इससे पता चलता है कि दिल्ली से बाहर की क्षेत्रीय गतिविधियों का योगदान इस प्रदूषण को बढ़ाने में अधिक रहा।
- लॉकडाउन के दौरान विश्लेषण से पता चलता है कि दिल्ली के वायुमंडल में PM 2.5 का स्तर बढ़ाने में वाहनों और उद्योगों का योगदान अहम ह। इन पर नियंत्रण (जैसा कि लॉकडाउन के दौरान) लगाकर PM 2.5 के स्तर में उल्लेखनीय कमी आ सकती है।
- क्षेत्रीय स्तर पर वायु की गुणवत्ता के बिगड़ने का मुख्य कारण बॉयोमास और उद्योग हैं और लॉकडाउन के बावजूद इनके चलते पर्याप्त प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ता रहता है।
- सभी तरह की पाबंदियों के बावजूद दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी पाई गई। इससे प्रदूषण में अनेक गैर-स्थानीय स्रोतों से होने वाले योगदान के बारे में पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि दिल्ली में एयरशेड आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। साथ-साथ बाकी नॉन-अटेनमेंट शहरों के लिए भी प्रभावी वायु गुणवत्ता प्रबंधन योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
टेरी के बारे में
द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानि टेरी एक स्वतंत्र, बहुआयामी संगठन है जो शोध, नीति, परामर्श और क्रियान्वयन में सक्षम है। संगठन ने लगभग बीते चार दशकों से भी अधिक समय से ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में संवाद शुरू करने और ठोस कदम उठाने का कार्य किया है।
संस्थान के शोध और शोध-आधारित समाधानों से उद्योगों और समुदायों पर परिवर्तनकारी असर पड़ा है। संस्थान का मुख्यालय नई दिल्ली में है और गुरुग्राम, बेंगलुरु, गुवाहाटी, मुंबई, पणजी और नैनीताल में इसके स्थानीय केंद्र और परिसर हैं जिसमें वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों और इंजीनियरों की एक बहु अनुशासनात्मक टीम कार्यरत है।
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