''जगमग पाठशाला'' परियोजना झारखंड के सरकारी स्कूलों में सोलर के ज़रिए शिक्षा में सुधार के लिए स्वच्छ और विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करने की एक पहल है। ये विद्यालय दूरस्थ क्षेत्रों में स्थित हैं। इस परियोजना से छात्रों को बहुत फायदा हुआ। झारखंड के अलावा इस परियोजना को मेघालय और पश्चिम बंगाल में भी लागू किया जा रहा है।
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ये चेहरे सोलर की रौशनी से खिल रहे हैं।
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एक वक़्त था जब झारखण्ड के पहाड़ों और घने जंगलों के बीच बसे ज़्यादातर विद्यालयों में बच्चे कम रौशनी में पढ़ते थे।
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गर्मी के मौसम में तो हाल और बुरा होता।
छात्रों और अध्यापकों के लिए पसीने से लथपथ होकर पढ़ना और पढ़ाना मुश्किल हो जाता।
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कुछ विद्यालयों में बिजली का कनेक्शन था लेकिन ट्रांसफॉर्मर जल जाने या आंधी में तार टूट जाने से कई
दिनों तक बिजली गुल हो जाना आम बात थी। बिजली गुल होने का असर उन बच्चों पर ज़्यादा होता जो आवासीय विद्यालयों में रहते हैं।
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ऐसे हालात में बच्चों को पढ़ाई करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता।
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लेकिन अब इन्हें लालटेन या दिये की कम रौशनी में पढ़ने से छुटकारा मिल गया है।
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इसमें इनकी मदद की ‘’जगमग पाठशाला’’ परियोजना ने।
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यह परियोजना Signify Innovations India Limited (पहले फिलिप्स लाइटिंग इंडिया लिमिटेड के नाम से
जाना जाता था) द्वारा वित्त प्रदत है। टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट) इस परियोजना को अपने टेक्निकल और फील्ड अनुभव के आधार
पर लागू कर रही है। टेरी संस्था ने विद्यालयों की ज़रूरत के हिसाब से पावर प्लांट्स की स्थापना की।
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अभी तक रांची और गुमला जिले (झारखंड) के 41 स्कूलों में 2 से 3 किलोवाट क्षमता वाले सोलर पावर प्लांट लगाए गए हैं।
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विद्यालयों में स्थापित इन पावर प्लांट्स में इतनी क्षमता है कि विद्यालय की सभी
कक्षाओं, कार्यालयों, शौचालय एवं रसोई घर में पर्याप्त रौशनी की सुविधा होती है।
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बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए ''जगमग पाठशाला''