बड़े पैमाने पर नवीकरणीय विद्युत प्रणाली में परिवर्तन के लिए एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और स्थिर नीति की आवश्यकता होगी
ऊर्जा अर्थव्यवस्था की रीढ है, यह औद्योगिक प्रक्रियाओं को मजबूती प्रदान करती है और लोगों का जीवन स्तर सुधारने में अहम भूमिका निभाती है। भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत बहुत कम, वैश्विक औसत का लगभग 30% है। ऐसे में, भारत जब अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने और लोगों को आजीविका के बेहतर अवसर प्रदान करने के लिये कदम उठायेगा तब ऊर्जा की खपत भी बढ़ेगी।
हालांकि, यह एक चुनौती है। जीवाश्म ईंधन के मामले में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है, इसके पास दुनिया का सिर्फ 0.3% तेल भंडार और 0.6% प्राकृतिक गैस का भंडार है। भारत का शुद्ध ईंधन आयात का औसत पिछले 20 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद का 3-4% है, और तेल की बढ़ी हुई कीमतों के दौरान यह 6-8% तक पहुंच गया था। यह एक महत्वपूर्ण वृहद आर्थिक संवेदनशीलता है। भारत अभी ही ऊर्जा — CO2, से संबंधित तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक उत्सर्जक है, और जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के वैश्विक प्रयास करने वालों की इस पर लगातार नजर है। भारत में आर्थिक विकास और ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत के अपेक्षाकृत निम्न स्तर के बावजूद घरेलू स्तर पर वायु प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय खतरे चिंताजनक स्थिति तक पहुंच गये हैं। भारत अपनी ऊर्जा चुनौतियों का समाधान कैसे करता है, यह इसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काफी मायने रखेगा।
दीर्घकालिक दृष्टि के तहत मध्यावधि लक्ष्य निर्धारित करें
भारत ने अपने बिजली क्षेत्र में परिवर्तन के लिए पहले से ही 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य की एक अल्पकालिक परिकल्पना तैयार की है। नई सरकार 175 गीगावाट उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लक्ष्य की पुन: पुष्टि और मजबूती प्रदान करते हुए, 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमताओं के लिए एक मध्यावधि लक्ष्य स्थापित कर सकती है। यह क्षेत्र को विस्तारित लक्ष्य और दृढता प्रदान करेगा और इससे इस क्षेत्र में निवेश में वृद्धि होगी। उदाहरण के लिए, टेरी के शोध से पता चलता है कि बड़ी जल बिजली परियोजनाओं को छोड़कर, 400-450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य वर्ष 2030 तक तकनीकी और आर्थिक रूप से व्यवहारिक होगा।
ग्रिड में लचीलेपन पर ध्यान दें
जब अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ने लगेगा, तब ग्रिड में लचीलापन न होने से अधिक हरित ऊर्जा को इसमें समाहित करने में बाधा आ सकती है।
लचीलेपन के मुद्दों को हल करने के लिए, सरकार को एक अंतर-मंत्रालयी, संपूर्ण-सरकार को लेकर एक 'फ्रेक्सीबिलिटी मिशन या लचीलापन मिशन' स्थापित करना चाहिए ताकि बिजली प्रणाली में लचीलेपन को बढ़ाने के लिए आवश्यक अल्प कालिक और मध्य-कालिक उपाय तय किये जा सकें जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की उच्च हिस्सेदारी को इनमें शामिल किया जा सके। ऐसा करते समय इन बातों पर ध्यान होना चाहिए -
- मांग को अधिक लचीला और आपूर्ति के प्रति उत्तरदायी बनाना
- सीमाओं से आगे बढ़कर ऊर्जा लेनदेन को बढ़ावा देना
- पंपम्ड स्टोरेज हाइड्रो स्टेशन (पनबिजली ऊर्जा भंडार) पर बल
- बैटरी आधारित भंडारण को बढ़ावा देना और अतिरिक्त भंडारण क्षमता विकसित करना; मौजूदा बिजली संयंत्रों को अधिक लचीला बनाना
- बिजली व्यवस्था में लचीले निवेश और संचालन को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक विनियामक और बाजार संकेतक तैयार करना
भारत पवन और सौर ऊर्जा की कम लागत का लाभ उठा कर अपने यहां औद्योगिकरण में बिजली के लिये अधिक से अधिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने वाला पहला देश बन सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नवीकरणीय ऊर्जा परिष्कृत कोयले की तुलना में सस्ती है, और निश्चित रूप से मौजूदा कोयले की तुलना में भी सस्ती है।
बड़े पैमाने पर नवीकरणीय विद्युत प्रणाली में परिवर्तन के लिए हालांकि, एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और स्थिर नीति की आवश्यकता होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सुव्यवस्थित और लाभप्रद तरीके से हो रहा है।
इसके लिये निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए –
- यह सुनिश्चित करना कि नीति मौजूदा परिसंपत्तियों के लचीले संचालन के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है, ताकि वे बिजली क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें और भविष्य में निष्क्रिय परिसंपत्तियों के जोखिम से बचा जा सकेगा
- बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार करना; नवीकरणीय ऊर्जा कम शुल्क वाले उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करके सब्सिडी के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है
- यदि नवीकरणीय ऊर्जा की ग्रिड एकीकरण लागत को कम रखने के लिए बिजली प्रणाली को और लचीला बना दिया जाये, तो बिजली क्षेत्र की कुल सामाजिक लागत को कम किया जा सकता है, जो उपभोक्ताओं, व्यवसायों और भारत की अर्थव्यवस्था की जीत होगी।