अक्षय ऊर्जा के लाभ सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं है बल्कि इस क्षेत्र में रोज़गार के अवसर भी पैदा किए जा सकते हैं। इसी तरह अगर हम साइकिल की तरफ रुख करेंगे तो भारतीय अर्थव्यवस्था को इसका फायदा होगा। कृषि उत्पादन तो हमने बढ़ा लिया है लेकिन पोषण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हमें जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा और इससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर हो सकते हैं।
बीते महीनों में हमने साफ़ और स्वच्छ हवा को महसूस किया। अपने आस पास चिड़ियों और पक्षियों की चहचहाहट सुनी। यमुना के साफ़ पानी की तस्वीरें देखने को मिली लेकिन इन सबके लिए हम सभी ने एक बड़ी कीमत चुकाई। हम सब अपने अपने घरों में कैद हुए तब जाकर साफ़ पर्यावरण को हम महसूस कर पाए। अब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार सोशल डिस्टेंसिंग जैसे तरीके अपना कर गतिविधियों को फिर शुरू कर रही है। लोग धीरे धीरे सड़कों पर लौट रहे हैं। इसके साथ ही हमें ये भी डर है कि कुछ महीनों पहले की दम घोटू हवा में शायद हम फिर से जीना शुरू कर दें। नीला आसमान अब फिर से बेरंग दिखाई दे। चिड़ियों की चहचहाहट गुम हो जाए।
लेकिन इससे ये बात तो साफ़ हो गयी है कि अगर हम ठान ले तो पर्यावरण को स्वच्छ रखना बहुत बड़ी चुनौती नहीं है और उसके लिए हमें ग्रीन डेवलपमेंट का रास्ता अपनाना होगा।
बदलनी होगी विकास की परिभाषा
कोविड से उबरने के दौरान और उसके बाद भी भारत के पास एक बड़ा मौका है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि ये सही वक़्त है जब हम Green Development को आगे बढ़ा सकते हैं। ग्रीन डेवलपमेंट पर हम बात करते आ रहे हैं लेकिन अब समय की मांग है जब इसे तेज़ी से आगे बढ़ाना होगा। ये एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ विकास भी संभव है, हमें नौकरी के मौक़े भी मिलेंगे और पर्यावरण का संरक्षण भी मुमकिन होगा।
ग्रीन डेवलपमेंट का मतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल सस्टेनेबल ढंग से किया जाए। और साथ ही हमारा उत्पादन और उपभोग का तरीका ऐसा हो जिसमें कूड़ा कम से कम पैदा हो और जो कूड़ा पैदा हो रहा है वो दूसरी चीज़ के निर्माण के लिए संसाधन बन जाए। इसे संसाधन दक्षता भी कहते हैं।
Green Development के लिए तीन क्षेत्र महत्वपूर्ण
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अक्षय ऊर्जा में छिपे हैं नौकरी के मौक़े
भारत अक्षय ऊर्जा महत्वाकांक्षी है लेकिन अब इस तरफ तेज़ी से कदम बढ़ाने होंगे। अक्षय ऊर्जा से वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी। कोयले से बनने वाली बिजली से जो प्रदूषण होता अक्षय ऊर्जा इसका समाधान है और इसमें रोज़गार के अवसर भी हैं। टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट) के महानिदेशक डॉ अजय माथुर का कहना है कि अक्षय ऊर्जा एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ कर्मचारियों को बहुत पास पास काम नहीं करना पड़ता। तो इस क्षेत्र में सोशल डिस्टेंसिंग बनाना आसान है। उनका ये भी मानना है कि इसमें नौकरिया भी कोयले से बिजली बनने की प्रक्रिया से अधिक है।
ऐसे समय में जब हमारे सामने रोज़गार की चुनौती होंगी। अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देना एक मुहीम बन सकती है। भारत के पास बिजली क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने का एक अवसर है। Cobenefits study के अनुसार अक्षय ऊर्जा में पारंपरिक ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तुलना में अधिक श्रम की ज़रूरत होती है। पनबिजली, सोलर और बायोमास से बनने वाली प्रत्येक मेगावाट बिजली में नौकरी के अवसर ज़्यादा हैं। रूफटॉप सोलर 24.72 व्यक्तियों, छोटे हाइड्रो 13.84 और बायोमास 16.24 व्यक्तियों को एक-मेगावॉट संयंत्र के निर्माण और चलाने के लिए रोज़गार प्रदान करता है।
इस पर टेरी के डिस्टिंग्विश्ड फ़ेलो अजय शंकर कहते हैं कि अक्षय ऊर्जा के स्त्रोतों का विकास करना ज़्यादा महंगा नहीं है। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा इस समय कोयले की बिजली से सस्ती है। अजय शंकर का कहना है कि भारत में अब कोयले पर आधारित प्लांट लगाने की ज़रूरत नहीं है। कोयला आधारित प्लांट न लगाने का फैसला पूरे देश में लिया जा सकता है।
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साइकिल से भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा लाभ
याद करें उस ज़माने को जब आप पैदल चलते थे या थोड़ी दूर जाने के लिए साइकिल का प्रयोग करते थे। अब उतनी ही दूरी के लिए शहरो में कार या मोटरबाइक का प्रयोग बहुत बढ़ गया है। फलस्वरूप वायु प्रदूषण और सड़को पर भीड़ भी बढ़ती जा रही है। कोविड 19 के समय और लॉकडाउन में ढील देने के बाद भी एक दूसरे के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखने की आवश्यकता है। लेकिन सार्वजनिक परिवहनों में एक दूसरे से दूरी बनाना मुश्किल होता है इसलिए हमें सार्वजनिक परिवहनों पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा। बस, मेट्रो और कार में जाने के बजाय पैदल चलने या साइकिल का उपयोग ज्यादा उचित होगा।
टेरी के ही एक अन्य डिस्टिंग्विश्ड फ़ेलो श्रीप्रकाश का कहना है कि शहरों में 8-10 किलोमीटर तक की कम दूरी तय करने के लिए साइकिल और पैदल चलने को बढ़ावा देना चाहिए। क्योंकि शहरों में रोज चलने की दूरी ज्यादातर इससे कम ही होती है। सड़कों पर भीड़भाड़ भी कम होगी और वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। साइकिल चलाना या पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए भी लाभप्रद है। इसके लिए सड़कों पर साइकिल चलाने और पैदल चलने वालो को रास्तों की सुविधा देनी चाहिए।
इससे न केवल वायु प्रदूषण कम होगा बल्कि देश को आर्थिक लाभ भी होगा। टेरी के एक अध्ययन के अनुसार यदि 50% प्रतिशत लोग कम दूरी के लिए साइकिल का प्रयोग करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था को वार्षिक जीडीपी के 1.6% प्रतिशत तक लाभ होगा। साइकिल चलाने से वायु प्रदूषण से संबंधित मृत्यु दर को कम करने में मदद मिल सकती है।
पिछले कई सालों में विकास के नाम पर इन्हें अनदेखा किया गया है। साइकिल और पैदल चलने को बढ़ावा देना हमारी प्राथमिकता नहीं रही है लेकिन अब समय है जब हमें साइकिल और पैदल चलने को बढ़ावा देने की दिशा में सोचना होगा। लेकिन अंतर-शहरी यातायात व्यवस्था के साथ साथ हमें अन्तर्राज्यीय परिवहन ढाँचे पर भी ध्यान देना होगा। इसके लिए रेलगाड़ियां ज्यादा उपयुक्त हैं। रेलगाड़ियां ज्यादा लोगों को ले जा सकती हैं तथा एक दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाना भी आसान है।
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गरीब और कमज़ोर लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा ज़रूरी
कोविड 19 से लड़ने में डॉक्टरों का कहना है कि हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम मज़बूत होना चाहिए। लाखों गरीब और मज़दूर प्रवासी अपने घरों की तरफ रुख कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जिनके पास खाद्य सुरक्षा ही नहीं है तो ऐसे में इन लोगों के संक्रमित होने की आशंका ज़्यादा है। हमें खाद्य सुरक्षा भी हासिल करनी होगी। सामाजिक-आर्थिक विकास और इस तरह की आपदाओं के खिलाफ लड़ने के लिए आबादी के लिए स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पोषण की हर स्थिति में सुधार ज़रूरी है।
इस पर टेरी के अन्य डिस्टिंग्विश्ड फ़ेलो एस विजय कुमार का कहना है कि भारत में हमने बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा तो हासिल की है लेकिन पोषण सुरक्षा नहीं। गरीबों और कमजोरों में से सबसे गरीब लोगों के लिए हमें खाद्य सुरक्षा के अंतराल को भरने की आवश्यकता है और साथ ही हमें मूल्य श्रृंखला के साथ पोषण सुरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
पोषण सुरक्षा हासिल करने के ज़रूरी है कि हम जैविक खेती पर ध्यान दें। जैविक खेती हमारी स्वस्थ आहार प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके लिए हमें यूरिया के अधिक इस्तेमाल से बचना होगा। यूरिया पर्यावरण और सेहत दोनों के लिए नुकसानदेह है। और अगर जैविक खेती को हम गाँव के स्तर पर ही बढ़ावा दें यानी इसे बनाने का ढांचा गाँव स्तर पर ही स्थापित किया जाए तो गाँव में नौकरी के अवसर भी पैदा होंगे।
हालाँकि जैविक खेती पर ध्यान देते समय हमें कृषि की विविधता की महत्वता को समझना चाहिए। अनाज के आलावा हमें प्रोटीन, फल और सब्ज़ियों को भी जैविक खेती के दायरे में लाना होगा।
इस दिशा में टेरी शोध भी कर रहा है और साथ में इस तरह के उत्पाद भी बनाए जा रहे हैं जो जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं।
कोविड-19 ने हमें एक सीख दी है और इससे अब हमें वापस नहीं जाना है बल्कि आगे देखना होगा।
जैसा कि हाल फिलहाल टेरी द्वारा आयोजित एक वेबिनार में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर, इंडियन ऑब्जर्वेटरी एंड चेयर- ग्रन्थम रिसर्च इंस्टिट्यूट के सह-निदेशक निकोलस स्टर्न ने कहा कि कोविड संकट के बाद हमें चीजों को अलग तरीके से करने की आवश्यकता होगी। रिकवरी एजेंडा इतना मज़बूत हो जो स्थिरता के साथ साथ कर्ज में कमी लाए। भारत 21 वीं सदी को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और यह नेतृत्व कर सकता है।