1960 के दशक से भारतीय कृषि में भारी वृद्धि हुई है। हमने भारत की खाद्य असुरक्षा को दूर किया है लेकिन साथ ही नई चुनौतियां सामने आई हैं। भारत की खाद्य समस्या ने एक नया रूप ले लिया है। जलवायु परिवर्तन से हुए असर ने पहले से मौजूद कड़ी चुनौतियों को और बड़ा बना दिया है। जलवायु परिवर्तन (सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, भारी बारिश) के प्रभाव में जोखिम प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है।
जलवायु परिवर्तन हमारे आस पास हो रहे प्राकृतिक बदलावों की सच्चाई है। वैज्ञानिक समुदाय भी इस बात से सहमत है। पिछली सदी में सतह के तापमान में वृद्धि हुई। और इसका असर हम भौतिक और जैविक प्रणालियों पर देख सकते हैं। जलवायु परिवर्तन जीवन से जीवन के सभी हिस्से प्रभावित हैं। और कृषि क्षेत्र भी इससे बच न सका है।
भारत में दुनिया का 2.4% भूभाग, 18% मानव आबादी और 15% पशुधन है। यद्यपि कृषि भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 15% है, लेकिन भारत की भौगोलिक भूमि का लगभग 46% हिस्सा खेती के अधीन है, 50% से अधिक आबादी का कमाई का स्त्रोत कृषि है। हालांकि 1960 के दशक से भारतीय कृषि में भारी वृद्धि हुई है, और हमने खाद्य असुरक्षा को दूर किया है लेकिन साथ ही नई चुनौतियां सामने आई हैं। एक तरफ़, भारत की जनसंख्या को खिलाने की निरंतर समस्या है तो दूसरी तरफ़, कृषि को कमाई का जरिया बनाए रखने की दिक्कत और जलवायु परिवर्तन से हुए असर ने पहले से मौजूद कड़ी चुनौतियों को और बड़ा बना दिया है। जलवायु परिवर्तन (सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि, भारी बारिश) के प्रभाव में जोखिम प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है।
भारतीय कृषि लगभग 86% लघु-धारक कृषि है (10 वीं कृषि जनगणना 2015-16), और इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में है यह निर्वाह कृषि है। जो कृषि भूमि क्षेत्र विशेष रूप से वर्षा आधारित है, जलवायु परिवर्तन के कारण उसकी संवेदनशीलता और बढ़ जाती है।
भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2018 ने भारतीय कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के अनुसार तापमान में एक डिग्री की वृद्धि का असर खरीफ सीजन के दौरान कृषि आय में 6.2% और देश के असिंचित क्षेत्रों में रबी के दौरान 6% की गिरावट होगी। इसके साथ ही औसत वर्षा में 100 मिलीमीटर की कमी से खरीफ के दौरान किसानों की आय में 15% और रबी मौसम के दौरान 7% की गिरावट होगी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि शुद्ध बोया गया 67% कृषि क्षेत्र वर्षा आधारित है, ये प्रभाव भारतीय किसानों के लिए भारी पड़ने वाले हैं। गैर-सिंचित वर्षा आधारित कृषि क्षेत्र में देश के 84% ग्रामीण लोग रहते हैं। यह खुद कृषि उत्पादन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और इस तरह देश के सकल घरेलू उत्पादन वृद्धि पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों को दर्शाता है।
हाल के एक अनुमान से पता चलता है कि 2050 तक कृषि उत्पादन वर्तमान कृषि उपज के 4% से 25% तक घट सकता है। न सिर्फ फसल की पैदावार बल्कि, जलवायु परिवर्तन भारतीय पशुधन को भी प्रभावित करेगा। एक विश्लेषण के अनुसार, 2 - 6 डिग्री सेल्सियस में वृद्धि से मवेशियों में बीमारी और मृत्यु दर बढ़ने के कारण, दुग्ध में गिरावट (क्रॉसब्रीड में 0.63 %, भैंस में 0.5 %, देशी मवेशिओं में 0.4 %) और मवेशियों की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इस तरह, जलीय और पारिस्थिकी तंत्र में परिवर्तन के कारण मतस्य पालन के व्यवहार, वितरण और प्रवासन और उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होने का अनुमान है।
जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों पर भारत ने ध्यान देना शुरू कर दिया है और यह इसकी प्राथमिकता में भी शामिल है। जलवायु परिवर्तन पर भारत कि राष्ट्रीय कार्य योजना में द नेशनल एक्शन प्लान्स ऑन क्लाइमेट चेंज (NAPCC) में आठ मिशन शामिल है- जिसमें स्थायी कृषि (आबिओटिक स्ट्रेस -टोलेरंट किस्में, बीमा तंत्र विकसित करना), हरित भारत (वनों का संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना), जल संरक्षण और जलवायु पर अनुसंधान का समर्थन करना शामिल है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए 2008 में इनकी शुरुआत की गयी। जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध भारत की उच्च प्राथमिकता में शामिल है।
कृषि क्षेत्र में विकास योजनाएं अधिकांश मामलों में अनुकूलन (Adaptation) नतीजों को बेहतर बनाने के साथ-साथ शमन (Mitigation) लाभ भी प्रस्तुत करती है।
इनमें मुख्य रूप से शामिल है
- मृदा प्रबंधन (जैविक खेती, शून्य जुताई, कृषि अवशेषों की अवधारण) फसल विविधीकरण, फसल प्रणाली अनुकूलन (Adaptation)
- प्रबंधन (फसल चक्रीकरण, क्रॉपिंग पैटर्न बदलना और फसल मिश्रण, छोटी अवधि की फसल की किस्में, जैविक और अजैविक तनाव के अनुरूप वाली बीज किस्मों का विकास)
- जल प्रबंधन (सिंचाई की कवरेज का विस्तार और लेजर भूमि समतलन, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के माध्यम से जल उपयोग दक्षता में सुधार)
- स्थायी भूमि प्रबंधन (कृषि, संरक्षण कृषि); जोखिम साझाकरण (सह-निवेश, सामुदायिक जुड़ाव), जोखिम हस्तांतरण (फसल / पशुधन बीमा)
- बेहतर पूर्वानुमान और कृषि-सलाहकार (स्थानीयकृत मौसम पूर्वानुमान, एसएमएस और किसानों के लिए समर्पित वेब पोर्टल)
भारतीय कृषि में जलवायु परिवर्तन नीति का अनुकूलन (Adaptation) पर ध्यान केंद्रित करना और किसानों की अनुकूली क्षमता विकसित करना प्रमुख चिंता का विषय है। इसे तथ्य से समझा जा सकता है कि कृषि जीवनयापन का एक प्राथमिक स्रोत है, जिसमें 50% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है जो आय का मुख्य स्रोत है।
कृषि क्षेत्र में संभावित जलवायु प्रभावों के पैमाने और दायरे को देखते हुए, व्यक्तिगत क्षेत्र / मुद्दे-विशिष्ट कार्यक्रमों के अभ्यास में बदलाव की ज़रूरत है और कृषि और संबंधित क्षेत्र में विभिन्न विकास कार्यक्रमों में जलवायु परिवर्तन से जुड़े विचारों को मुख्यधारा में लाने की ज़रूरत है। इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा और आजीविका जैसे पीडीएस और मनरेगा जैसे विभिन्न विकास कार्यक्रमों को जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए अनुकूलित किया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन (Adaptation) के लिए न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि ज्ञान और मानव क्षमता की दृष्टि से भी बड़े और निरंतर निवेश की आवश्यकता होगी।