जिनके कारखाने पहले पावर लूम के शोर से गुलज़ार रहते थे अब वहां उदासी छायी हुई है। लॉकडाउन ने बनारसी साड़ी के कारोबार को रोक दिया है। लेकिन इस क्षेत्र में प्रवासियों को रोज़गार के मौक़े नज़र आ रहे हैं।
पारस पटेल अपने 5 बुनकर साथियों के साथ ज़िंदगी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे थे। कुछ महीने पहले ही नेपाल से उसे 1000 साड़ी तैयार करने का ऑर्डर मिला था। सभी बुनकर साथी ख़ुशी ख़ुशी दिन रात दो शिफ्ट में बुनाई करके साड़ियाँ तैयार कर रहे थे लेकिन इस बीच हालात बदल गए। जब साड़ियों को निर्यात करने का मौका आया तो कोरोनावायरस महामारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लागू हो गया। साड़ियों को नेपाल निर्यात नहीं किया जा सका। 1000 साड़ियाँ भंडार में ही रह गयी। और इस निर्यात से मिलने वाली लगभग 10 लाख रुपए की पूँजी अटक गयी। और इससे उनकी बैंक की देनदारी भी बढ़ गयी है।
पारस की ही तरह दूसरे बुनकरों का भी यही हाल है। जिनके कारखाने पहले पावर लूम के शोर से गुलज़ार रहते थे अब वहां उदासी छायी हुई है। हालाँकि लॉकडाउन में मंदी झेल रहे कारखानों के मालिक अपने साथी बुनकरों की आर्थिक सहायता कर रहे हैं लेकिन सवाल ये है कि यह सहायता कब तक?
बुनकरी का व्यवसाय वाराणसी के लाखों परिवारों की जीवन रेखा है। बुनकरी का यह काम सदियों से चला आ रहा है। यहाँ की बनारसी साड़ी भारत की उत्कृष्ट साड़ियों का नमूना है। यहाँ की सिल्क साड़ियाँ बुनाई के संग ज़री के डिज़ाइन से तैयार होती है। पहले इसमें शुद्ध सोने की ज़री का प्रयोग भी होता था लेकिन बढ़ती कीमतों को देखते हुए वक़्त के साथ नकली चमकदार ज़री के इस्तेमाल ने ज़ोर पकड़ा। विवाह और उत्सवों में ये साड़ियाँ भारतीय स्त्रियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
पारस पटेल सरकार से चाहते है कि लॉकडाउन को समाप्त करते हुए बुनकरों को आर्थिक सहायता दी जाए जिससे यह कुटीर उद्योग अपनी गति में आकर लाखों बुनकर परिवारों का पुनः जीविकोपार्जन का माध्यम बन सके।
वाराणसी जनपद के मोहम्मदपुर गाँव निवासी 35 वर्षीय कौसर अंसारी का पुश्तैनी व्यवसाय बुनकरी है। कौसर अंसारी बताते हैं कि वे सालों से बुनकरी के पेशे में हैं।
कौसर अंसारी को भी फ़रवरी माह के अंतिम सप्ताह में वाराणसी के ही बड़े आढ़तियों से 400 साड़ियाँ तैयार करने का ऑर्डर मिला था। जिसकी पहली 200 साड़ियों की खेप अप्रैल के प्रथम सप्ताह में करनी थी। व्यापारिक शर्तो के अनुसार साड़ियों का उत्पादन हो गया है लेकिन लॉकडाउन के कारण पहले खेप की आपूर्ति और वितरण संभव नहीं हो पा रहा है। लॉकडाउन की वजह से आढ़तियों के संस्थान भी बंद हैं। पहले खेप के लिए साड़ियों के उत्पादन में कौसर की 5 लाख रुपये की पूँजी अटक गई है। अगले फेज की साड़ियों के उत्पादन के लिए कच्चा माल भी नहीं मिल पा रहा है जिस कारण पावर लूम पूरी तरह से बंद है। कौसर अंसारी सयुंक्त परिवार में रहते है। परिवार में 18 सदस्य हैं। और इनके परिवार की आय का ज़रिया बुनकरी है।
हालत ये है कि जो जमा पूँजी व्यापार के लिए रखी थी उसका इस्तेमाल अब परिवार के जीवन यापन के लिए हो रहा है। अगर बाज़ार जल्द नहीं खुला तो खर्च वहन करना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि कुछ परिवारों कि आय का स्त्रोत केवल बुनकरी ही है।
पिछले 10 वर्षों से उत्तर प्रदेश के बुनकरों के सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रहे प्रमोद श्रीवास्तव का भी अनुमान है कि जब कोरोना से उत्पन्न विपरीत परिस्थितियां अनुकूल होगी, तभी वाराणसी के साड़ी उद्योग में कोई सुधार हो पाएगा। तुरंत कोई उछाल नहीं आने वाला है क्योंकि अभी जो साड़ियाँ आढ़तियों, शोरूम या वितरण के लिए पाइप लाइन में है, उनकी बिक्री की तत्काल कोई संभावना नही दिख रही है।
प्रमोद जी कहते हैं कि जो बुनकर कार्य की कमी के कारण पिछले 10 वर्षो से इस व्यवसाय को छोड़कर औद्योगिक राज्यों की ओर पलायन कर गए थे वो भी इस कोरोना महामारी के कारण बहुत तेजी से वापस आ रहे हैं। सरकार और कॉर्पोरेट जगत को अब इस उद्योग की सहायता करनी चाहिए ताकि यह उद्योग फिर से गतिमान हो कर अपने पुराने निपुण बुनकरों को भी यही पर कार्य दे सके जिससे उन्हें पुनः पलायन का दंश ना झेलना पड़े।
प्रवासियों के लिए नौकरी के मौक़े
बुनकरी पेशे की हालत अब सुधर रही है। पांच साल पहले तक कई घंटे बिजली गुल रहती थी और पावर लूम के कारीगरों का वक़्त ज़ाया हुआ करता था। लेकिन अब सोलर पावर से लोगों की ज़िंदगी में बदलाव आ रहा है। लोगों को इस घरेलू काम में संभावना दिखती है।
पावर लूम को चलाने वाली मोटर को कार्य के दौरान बिजली की निरंतर आपूर्ति जरुरी है । अन्यथा लूम के एका - एक बंद होने से कभी - कभी ताना बाना के धागे टूट जाते हैं जिससे साड़ी की गुणवत्ता में गिरावट आती है। पिछले कुछ वर्षो से बिजली की आपूर्ति में बहुत अधिक सुधार हुआ है लेकिन फिर भी वाराणसी जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में अक्सर बुनाई के समय में ही 6 से 8 घंटे की बिजली कटौती होती है। जिसके कारण साड़ी के बुनाई में लगने वाला समय बढ़ जाता है। कुछ कारखाना मालिक बिजली कटौती का समाधान डीजल जनरेटर से कर रहे हैं। लेकिन इस तरह के समाधान वायु और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाते हैं जो कि बुनकरों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। साड़ी तैयार करने की लागत भी बढ़ जाती है क्योंकि डीजल पर 10000 रुपए प्रतिमाह तक खर्चा हो जाता है, जनरेटर की मरम्मत के लिए भी 5000 रुपए सालाना उपर से खर्च करने पड़ते हैं।
बुनकरों को पावर लूम निर्वाध रूप से चलाने का समाधान TERI के आजीविका संवर्धन परियोजना से मिला । जिसके तहत हाइब्रिड सोलर चार्जिंग स्टेशन बुनाई के कारखानों में स्थापित किए गए हैं। जिससे ताना बाना में धागा टूटे बिना ही 4 पावर लूम निर्वाध गति से चल रहे हैं। क्योंकि इसमें ग्रिड, सोलर और बैटरी के पॉवर चेंज ओवर की तकनीक ऑटोमेटिक है। रात्रि में भी 4 पावर लूम को 3 घंटे तक लिथियम बैटरी में स्टोर बिजली से चलाया जा सकता है। कुछ कारखानों में धागो के लच्छे बनाने के लिए रीलिंग मशीन भी चलाई जा रही है। इस सिस्टम से कोई प्रदूषण नहीं होता है ।
बिजली की निर्वाध आपूर्ति होने से साड़ी की बुनाई में लगने वाले समय में 30% तक की कमी आ गई है। बुनकरों की आय में 30% तक वृद्धि हुई है जहाँ पहले प्रत्येक बुनकर की आय 9500 रुपए प्रतिमाह थी अब सोलर सिस्टम स्थापना के उपरांत 12500 तक पहुंच गई है। कारखाना मालिकों की आय में भी 35 % तक वृद्धि हुई है।
टेरी के प्रयास से तीन चरणों में 148 कारखानों में हाइब्रिड सोलर चार्जिंग स्टेशन की स्थापना हो गई है तथा 38 स्टेशनों के स्थापना का कार्य चल रहा है। स्थापित स्टेशनों से 560 पावर लूम में साड़ी की बुनाई एवं 32 रीलिंग मशीन में धागों के लच्छा बनाने का कार्य निर्वाध रूप से चल रहा है। जिससे 592 बुनकर परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। हाइब्रिड सोलर चार्जिंग स्टेशन की स्थापना लिए बुनकर को केवल कुल कीमत का 30 % सहयोग राशि ही देनी होती है जो कि महज 150000 रुपए है, शेष 70% सहयोग इन्डस टावर्स के सी एस आर फण्ड के माध्यम से होती है।
परियोजना के सफलतापूर्वक संचालन के लिए टेरी ने स्थानीय स्तर पर ऊर्जा उद्यमी बनाए हैं। जिनको विभिन्न चरणों में तकनीकी एवं प्रबंधकीय प्रशिक्षण देकर सशक्तीकरण किया गया है। ऊर्जा उद्यमी का मुख्य कार्य बुनकरों का चयन, को - फंडिग का संग्रहण एवं सामग्री की आपूर्ति स्थापना, रखरखाव एवं मरम्मत करना है। वाराणसी में टेरी का सहयोग 2 ऊर्जा उद्यमी कर रहे है। इन उद्यमियों के साथ सोलर सिस्टम की स्थापना और रखरखाव के लिए 14 प्रशिक्षित तकनीशियन की टीम कार्य कर रही है।
लॉकडाउन के दौरान मजबूरन घर लौटे प्रवासी मजदूरों के बीच रोज़गार एक मुद्दा है। कुछ लोग अपने पुश्तैनी बुनकरी के काम में लौटने के बारे में सोच रहे हैं। वे अब दोबारा पलायन नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि देर सवेर ही सही वे अपने बाप दादा के कारोबार में जल्द रम जाएंगे। चूँकि इस पेशे की हालत सुधर रही है तो अब इन बेरोज़गार लोगों के पास मौका है। नई तकनीक ने थोड़ा बाज़ार को भी बेहतर बनाया है। ऐसे में इन्हें एक बार अपने घरेलू काम में संभावना की किरण दिख रही है।