संसाधन दक्षता संसाधनों की बढ़ती लागत, सिमटती भूगर्भीय उपलब्धता, सामग्री की समाप्ति के जोखिम आदि से निपटने के लिए आदर्श नीति है
पिछले दो दशकों में निरंतर उच्च आर्थिक विकास दर, बढ़ती जनसंख्या और बढ़ते मध्यम वर्ग की आकांक्षाओं के कारण भारत में विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों की मांग बढ़ी है। इससे पर्यावरण पर दबाव और बढ़ रहा है और पर्यावरणीय स्थिरता को लेकर चिंता पैदा हो रही है। ऐसा अनुमान है कि 1970 से 2017 के बीच प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि खनिज अयस्कों की मांग 1.18 अरब टन से बढ़कर 7.4 अरब टन हो गई है, जिससे भारत चीन के बाद इन सामग्रियों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है। भारत में संसाधनों का दोहन सर्वाधिक है जो प्रति इकाई क्षेत्र में 454 टन / एकड़ के वैश्विक औसत की तुलना में 1,579 टन / एकड़ है।
भविष्य में आर्थिक वृद्धि के साथ, प्राकृतिक संसाधनों की खपत बढ़ना तय है और 2030 तक यह 15 अरब टन तक पहुंच सकती है। इस बढ़ती मांग को पूरा करना एक चुनौती होगी।
संसाधनों तक पहुंच की बढ़ती लागत, सिमटती भूगर्भीय उपलब्धता, सामग्री की समाप्ति का जोखिम, दीर्घकाल तक इनकी बहुलता के बारे में अनिश्चितता और इसे संचालित करने के लिए सामाजिक लाइसेंस जो कि इक्विटी और वितरण संबंधी चुनौतियों से उत्पन्न होता है, और प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित असमान और अनुचित पहुंच, मांग को पूरा करने में बाधक बनेंगे। इसके अलावा, संसाधनों के अधिक दोहन से पर्यावरण और जैविक संसाधनों पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। भारत पहले से ही संसाधनों का एक बड़ा आयातक है, जिनमें जीवाश्म ईंधन और मंहगी सामग्री का आयात शामिल है। आयात पर निर्भरता से व्यापार संतुलन बिगड़ने के साथ ही अर्थव्यवस्था के वैश्विक भू राजनीतिक और आर्थिक संकटों से प्रभावित होने का खतरा बढ़ जाता है।
सर्कुलर अर्थव्यवस्था के बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संसाधन दक्षता या संसाधनों के कुशलतापूर्वक उपयोग का दृष्टिकोण, एक आदर्श रणनीति है। यह 6R के सिद्धांत पर आधारित है जो मूल्य श्रृंखला के प्रत्येक चरण में सामग्री के अधिक से अधिक उपयोग पर बल देता है ताकि इसे वृत्ताकार बनाया जा सके। छह आर का अर्थ है — रिड्यूस (कम करना), रीयूज (पुनर्उपयोग), रीसायकल (पुनर्चक्रीकरण), रिडिजाइन (पुनः स्वरूप), रीमैन्यूफैक्चर (पुनर्निर्माण) और रिफर्बिश (नवीकरण)। अनुमान है कि 2025 तक, भारत में अकेले मोटर वाहन क्षेत्र से 15 से 20 मिलियन टन स्टील स्क्रैप और लगभग 1.5 मिलियन टन एल्यूमीनियम स्क्रैप उत्पन्न होगा। यह भारत द्वारा अभी आयात किये जाने वाले स्टील और एल्यूमीनियम स्क्रैप से कहीं अधिक है। छह आर सिद्धांत का उपयोग करके भारत इन दोनों क्षेत्रों में आयात निर्भरता को खत्म कर सकता है, इसके साथ ही चूना पत्थर, लौह अयस्क जैसी सामग्रियों की बड़ी मात्रा में बचत कर सकता है।
संसाधन दक्षता नीति अपनाना
संसाधन दक्षता रणनीति के माध्यम से संसाधनों का उपयोग बेहतर करना ही भारत की निरंतर उच्च वृद्धि का मुख्य आधार होगा। संसाधन दक्षता में उत्पाद और सेवा जीवन चक्र के साथ विभिन्न प्रकार की तकनीक, प्रक्रिया, नीति और संस्थागत हस्तक्षेप शामिल है। संसाधन दक्षता ऐसा मुद्दा है जिसमें कई क्षेत्र और नीति के कई स्तर शामिल हैं। ऐसी राजनीतिक व्यवस्था में, विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न उत्पादों के जीवन चक्रों से संबन्धित नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन, निगरानी और समीक्षा के लिए एक संस्थागत तंत्र महत्वपूर्ण है जो समय समय पर आवश्यक सुधार के लिये सुझाव दे सके।
एकीकृत संसाधन दक्षता नीति सरकार की परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाने में सहायक होगी और साथ ही सही सार्वजनिक सोच को स्थापित करने में मदद करेगी। ऐसी नीति के कुछ तत्व इस प्रकार होंगे –
- संसाधन दक्षता में सुधार लाने के लिए क्षेत्रों / सामग्रियों की प्राथमिकता तय करना
- विभिन्न क्षेत्रों में उपयुक्त संकेतकों के आधार पर सुधार को मापना
- जीवन चक्र के चयनित चरणों के दौरान लक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण अपनाना ताकि सामग्री की उत्पादकता, पुनर्चक्रीकरण, पुनर्चक्रीकरण के बाद नये उत्पाद का आकार लेने वाली सामग्री की विशिष्टता, पुनर्चक्रीकृत, पुनर्उपयोग, नवीनीकृत और पुनर्निर्मित उत्पाद के लिये मानक बनाये जा सकें।
- एक सक्षम नियामक ढांचा और अभिनव नीति दस्तावेज तैयार करना जो विभिन्न उद्योगों और क्षेत्रों को आकर्षित कर सकें।
- ऐसी नीतियों और आर्थिक प्रपत्रों को तैयार करना जो संसाधन दक्षता के तहत होने वाले परिवर्तन को सहज बना सके और इस पर आने वाली लागत को कम करें।
- बहु-हितधारक सहयोग के लिए मंच बनाना, जिसके परिणामस्वरूप विचारों का आदान-प्रदान हो और उन्हें अमल में लाया जा सके।
ये उपाय नए व्यवसायिक मॉडल के निर्माण में सक्षम होने चाहिए जो संसाधन दक्ष उत्पाद और सेवायें ला सकें और अंततः रोजगार के अनेक अवसर पैदा कर सकें। बढ़ी हुई मांग और उपभोक्ता की स्वीकृति, ऐसी अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करेगी जिसमें लागत कम हो, जो कीमतों में गिरावट और वांछित परिवर्तन की सुविधा प्रदान कर सके। इसके अलावा, पुनर्चक्रीकृत सामग्री के लिये अनिवार्य निर्धारित लक्ष्य और एक प्रभावी निगरानी नेटवर्क से तय समयसीमा में वांछित प्रदर्शन स्तर प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
यह लेख हमारे हरित एजेन्डा सीरीज का हिस्सा है। इस एजेन्डा के तहत हम पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण विषयों पर अपने सुझाव प्रस्तुत करते हैं। हमारी सिफारिशों को देखने के लिये नीचे दिये गये आइकन पर क्लिक करें —