हम एक ऐसे भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं जहाँ पानी की समस्या गंभीर रूप ले लेगी। पानी की गुणवत्ता में गिरावट, जल स्तर में कमी, भूजल का अधिक दोहन गंभीर भविष्य की और इशारा कर रहे हैं। बहुत ज़रूरी है कि हम अपने जल संसाधनों की सुरक्षा और प्रबंधन करें ताकि सभी लोगों को पानी मिल सके।
वर्षों से भारत में जल आपूर्ति की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है; पानी की गुणवत्ता में गिरावट, जल स्तर में गिरावट और भूजल का अत्यधिक दोहन गंभीर भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि जल संसाधनों का लगातार प्रबंधन किया जाये — संसाधनों की सुरक्षा की जाये और पानी की बर्बादी रोकें —ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी लोगों को लगातार पानी उपलब्ध हो सकेगा।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय जल फ्रेमवर्क (एनडब्ल्यूएफ) विधेयक, 2016 का अंतिम मसौदा तैयार किया है ताकि पानी का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने के लिए एक वैध समान राष्ट्रीय ढांचा प्रदान किया जा सके। पानी हालांकि, राज्यों का विषय होने के कारण इस कानून को लागू करना राज्यों के लिये बाध्यकारी नहीं होगा। लेकिन, अब समय आ गया है कि इस विधेयक को पारित किया जाये और विनियमों का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाये। इस मसौदा विधेयक में प्रत्येक अंतर-राज्यीय नदी घाटी के लिये 'नदी घाटी प्राधिकरण (आरबीए) की स्थापना का भी सुझाव है ताकि नदियों और घाटियों का अधिकतम और सतत विकास सुनिश्चित किया जा सके'। राज्यों को आगे आना चाहिए और इसे एक आदर्श बिल के रूप में अपना कर पानी के सतत प्रबंधन की योजना बनानी चाहिये। यह बिल पानी के उपयोग और संरक्षण के लिए कानून विकसित करने का आधार प्रदान करता है।
प्रमुख क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता बढ़ायें
फ्रेमवर्क बिल में पानी के उपयोग के मानक तैयार करने के बारे में भी कहा गया है, जो जरूरी है क्योंकि जिसकी नाप जोख हुई हो, उसका ही प्रबंधन किया जा सकता है। पानी की उच्च मांग वाले तीन क्षेत्रों - कृषि, घरेलू क्षेत्र और उद्योगों - में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के तहत गठित राष्ट्रीय जल मिशन में सभी क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता में 20% की वृद्धि की बात कही गई है। हालांकि, सुधार का दायरा अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग होता है और इसके लिए केवल एक विशेष क्षेत्र द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी के बारे में समझना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि विशिष्ट इकाइयों में किये जाने वाले उपयोग को भी समझना होगा। एनडब्ल्यूएफ को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए निम्नलिखित उपायों पर विचार किया जा सकता है –
- उद्योगों में और शहर के स्तर पर पानी का ऑडिट, उत्पादों में पानी के उपयोग का अनुमान लगाने जैसे कदम उठाना
- पानी के उपयोग की दक्षता पर क्षेत्रवार ध्यान दिया जाये —कृषि क्षेत्र में दक्षता मात्र 40% है, जबकि घरेलू क्षेत्र में यह लगभग 60% और औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 80% है
केंद्र और राज्य में संस्थानों का पुनर्गठन
जल क्षेत्र में चुनौती इस विषय पर काम करने वाले संगठनों की अधिकता की है जो इस बात पर ध्यान दिये बिना काम करते हैं कि दूसरा संगठन भी उसी क्षेत्र में काम कर रहा है। 20 वीं शताब्दी में बनाई गई संस्थाएं हो सकता है कि 21 वीं सदी में सतत्त जल प्रबंधन का कार्य अच्छी तरह नहीं कर पायें। इन संस्थानों के कामकाज को सही मायने में उपयोगी बनाने के लिए, निम्नलिखित उपायों की सिफारिश की गई है–
- राज्यों में जल प्रबंधन को विनियमित करने और इसका सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय स्तर पर एकल स्वतंत्र जल नियामक गठित करने की बजाय, प्रत्येक राज्य के लिए अलग अलग जल नियामक निकाय बनाएं
- एक स्वतंत्र प्राधिकरण बनाएं जो ओवरलैपिंग को दूर कर सके और देश में जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर सके।
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