वायु प्रदूषण भारत के लिए एक गंभीर मुद्दा है। इस समस्या को सही से समझने और हल के लिए वायु गुणवत्ता निगरानी का कार्य उन शहरों में भी किया जाना चाहिए जहाँ अभी तक यह नहीं हुआ है।
वायु प्रदूषण भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, जिन शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की गई उनमें से 75 प्रतिशत में निर्धारित मानकों का उल्लंघन पाया गया है। समस्या की वास्तविक गंभीरता तब और अधिक स्पष्ट हो सकती है जब वायु गुणवत्ता निगरानी का कार्य उन शहरों में भी किया जाये जहां अभी तक यह नहीं हुआ है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की शुरूआत की दिशा में पहल करके इस मुद्दे को हल करने के लिये एक बड़ा कदम उठाया है। कार्यक्रम में शहरी और क्षेत्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने पर ध्यान दिया गया है, परिवहन (बीएस- छह मानदंडों की शुरूआत), जैव ईंधन (एलपीजी की उपलब्धता बढ़ाई गई) और ऊर्जा (कड़े उत्सर्जन मानदंडों को लागू किया गया) से उत्सर्जन नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं। कई क्षेत्रों में कार्रवाई शुरू की गई, और हमारे अध्ययन से यह बात सामने आई है कि प्रदूषण के दो प्रमुख स्रोतों पर अब ध्यान देने की आवश्यकता है - क) औद्योगिक क्षेत्र और ख) गौण कण।
औद्योगिक प्रदूषण पर काबू पाना
टेरी ने अपनी उत्सर्जन विषय सूची में अनुमान लगाया है कि भारत में उद्योगों की वायु प्रदूषण में भागीदारी इस प्रकार है —प्रदूषक तत्व पीएम10 -51%, एसओ2 -35% और एनओएक्स -18%। टेरी द्वारा दिल्ली में स्रोतों के बारे में पता लगाने के लिये किये गये एक नवीनतम अध्ययन से पता चलता है कि शीत काल में उद्योग पीएम 2.5 सांद्रता में 30% तक योगदान करते हैं, ऐसे में इस क्षेत्र से उत्सर्जन को विनियमित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। औद्योगिक प्रदूषण से जुड़े मुद्दों में — उद्योगों के स्थित होने का स्थान, राख और सल्फर की अधिकता वाले ठोस ईंधन का उपयोग, दहन की निम्न स्तरीय तकनीक, गैस आदि को बाहर निकालने वाले उपकरणों का सीमित उपयोग और अपर्याप्त सतर्कता एवं विभिन्न नियामकों को समुचित ढंग से लागू नहीं करना शामिल है।
इस समस्या को हल करने के लिए, ये कदम उठाये जा सकते हैं -
- औद्योगिक समूहों और बिजली संयंत्रों में गैसीय ईंधन का पता लगाने के लिए नियामक ढांचा बनाना;
- नियामकों को बेहतर ढंग से लागू करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की क्षमता (जनशक्ति, तकनीकी और वित्तीय) बढ़ाना;
- पीएम 2.5 और एनओएक्स और एसओ2 के उत्सर्जन नियामक बनाना और उन्हें सख्ती से लागू करना।
गौण कणों को कम करने पर ध्यान देना
टेरी के अध्ययनों में पता चला है कि भारत में उद्योगों, बिजली संयंत्रों और परिवहन क्षेत्रों में गौण कणों के बनने के प्रति जागरूकता केवल क्रमश: लगभग 34%, 31% और 19% है।
ये कण मुख्यत: उद्योगों, बिजली संयंत्रों और परिवहन स्रोतों से उत्सर्जित एसओ2 और एनओएक्स के साथ कृषि उर्वरक के उपयोग और पशुधन से पैदा होने वाली अमोनिया गैस की प्रतिक्रिया से बनते हैं। निम्नलिखित उपायों से गौण कणों पर नियंत्रण किया जा सकता है –
- उद्योगों और बिजली संयंत्रों के लिए एनओएक्स और एसओ2 नियंत्रण के लिए नए कठोर मानक लागू करके
- एफजीडी और एससीआर जैसी प्रौद्योगिकियां स्थापित करके
- उर्वरक और पशुधन से अमोनिया उत्सर्जन को कम करके।
यह लेख हमारे हरित एजेन्डा सीरीज का हिस्सा है। इस एजेन्डा के तहत हम पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण विषयों पर अपने सुझाव प्रस्तुत करते हैं। हमारी सिफारिशों को देखने के लिये नीचे दिये गये आइकन पर क्लिक करें —