भारत को खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ साथ अपने विविध कृषि क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग और भूमि उपयोग प्रणालियों की स्थिरता सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है। इसे प्राप्त करने का अर्थ होगा नवाचार, विविधीकरण, व्यावसायीकरण, स्थिरता और मूल्य श्रृंखला में वृद्धि की दक्षता को आगे बढ़ाने के लिए क्षमताओं और कौशल का निर्माण करना।
खाद्य सुरक्षा और रोजगार में इसकी भूमिका के दृष्टिकोण से कृषि और संबद्ध क्षेत्र भारत में एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है। 2018 में, भारत में ग्रामीण पुरुष कार्यबल का 55 प्रतिशत (2000 में 71.4 प्रतिशत) और ग्रामीण महिला कार्यबल का 73.2 प्रतिशत (2000 में 85.4 प्रतिशत) कृषि में कार्यरत थे। भूमि और जल प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के अलावा वे बुवाई, रोपाई और कटाई के बाद के संचालन, पशुधन उत्पादन, सब्जी की खेती, मछली प्रसंस्करण और डेयरी उत्पादन से संबंधित गतिविधियों में भी शामिल हैं। कृषि पर उच्च निर्भरता और अधिक कामकाजी उम्र की आबादी का कौशल पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। हाल के दशकों में कृषि परिदृश्य में कई चुनौतियाँ देखी गई हैं जैसे कृषि लाभप्रदता में गिरावट, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, नए कीटों और बीमारियों का पुनरुत्थान, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन अन्य।
प्राकृतिक संसाधनों जैसे पानी की कमी और ऊपरी मिट्टी की हानि स्थायी कृषि उत्पादन के लिए संभावित खतरा पैदा करती है। कृषि के लिए सतत भूमि और जल संसाधन प्रबंधन प्रथाओं का भारत के लिए दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा चिंताओं के लिए गंभीर प्रभाव पड़ता है, जो गरीबी की व्यापकता और बदलती जलवायु से जुड़ी अनिश्चितताओं से और बढ़ जाता है। बढ़ती आबादी के साथ इस क्षेत्र पर खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग को पूरा करने का और दबाव है। इन मुद्दों को हल करने के लिए, अपेक्षित क्षमताओं और कौशल सेट के विकास के साथ-साथ अनुसंधान, प्रौद्योगिकी निर्माण और प्रसार पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
मूल्य श्रृंखला प्रक्षेपवक्र में सफलतापूर्वक संलग्न होने के लिए, विकासशील देशों में एक महत्वपूर्ण बाधा कौशल की कमी, कौशल बेमेल, और श्रृंखला में अकुशल और अर्धकुशल कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा है। वर्तमान उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने के बजाय खाद्य हानि की रोकथाम, बेहतर पूर्व-प्रसंस्करण आदि सहित मूल्य श्रृंखला के पूरे स्पेक्ट्रम में किसानों द्वारा कौशल और बेहतर मूल्य पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, हाल के विकास और उभरती जरूरतों के संदर्भ में कौशल को संबोधित किया जाना चाहिए, उदाहरण के लिए, कृषि और भूमि उपयोग में जलवायु परिवर्तन शमन गतिविधियों से कार्बन वित्त पर कौशल, खाद्य सुरक्षा और लेबलिंग के मामले में कौशल, कृषि अवशेष और भोजन पर कौशल अपशिष्ट प्रबंधन आदि।
अगर वैल्यू चेन में प्रासंगिक एक्टर्स के लिहाज से बात करें तो लगभग 2,80,000 से ज्यादा एग्री इनपुट डीलर्स हैं जिनको अगर आवश्यक तकनीकी स्किल्स प्रदान कर दी जाएं तो परिवर्तन एजेंट्स बन सकते हैं। ये डीलर्स बहुत ही महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं। इनको स्किल्स प्रदान करने के लिए विनियमन और प्रोत्साहन के अनूठे मिले-जुले तरीके की आवश्यकता है। इसके अलावा, सहकारी संस्थाओं के पास भारत में प्रशिक्षण संस्थाओं का बहुत बड़ा नेटवर्क है। अपनी विषयवस्तु और क्षमताओं के लिहाज से इनमें से बहुत से प्रशिक्षण संस्थान पुराने पड़ चुके हैं। कृषक उत्पादक संगठनों के संस्थागत निर्माण से जुड़ी चुनौतियों को पूरा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि ऐसे स्किल्ड पेशेवर हैं जो वेयरहाउसेज में अपने स्टॉक का प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित हैं, लेकिन खेती और छोटे व्यापारिक स्तर पर खाद्य भंडारण को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में कोई स्किल प्रशिक्षण नहीं है। ऐसा लगता है कि खाद्य क्षेत्र में आवश्यक स्किल्स वाली वर्कफोर्स की उपलब्धता में बहुत बड़ी मात्रा में कमी है। इसके कई आयाम हैं। सबसे पहले बुनियादी तकनीकी स्किल्स वाले एक प्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्कयता है। दूसरा, इस बात की आवश्यकता है कि अनुभवी वर्कफ़ोर्स की स्किल्स को बढ़ाने के लिए लगातार क्षमता-निर्माण के कदम उठाए जाने चाहिए। अंत में, कारोबार प्रबंधन प्रशिक्षण के जरिये नवाचार को बढ़ाने के लिए तकनीकी-प्रबंधकीय स्किल्स को विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
स्थानीय स्तर पर काम करने वाली ऐसी मानव संसाधन और संस्थाएं जो कृषक समुदाय को विशेषज्ञ/तकनीकी परामर्श सेवायें देती हैं, उन्हें मजबूत बनाए जाने की आवश्कयता है। माइक्रो--इरिगेशन, जैव रासायनिकों, एकीकृत फार्मिंग सिस्टम, एकीकृत पोषक और पेस्ट प्रबंधन, एग्रो-इकोटूरिजम, स्वच्छ ऊर्जा से जुड़े एप्लीकेशंस, मृदा की प्रकृति का विश्लेषण, अपशिष्ट और अपशिष्ट जल विश्लेषण, मौसम पूर्वानुमान और प्रबंधन का ज्ञान, पर्यावरणीय और जलवायु प्रभाव के तरीके और विश्लेषण, बाज़ार से जुड़ी सूचनाएं जैसे क्षेत्रों में हो रही प्रगति के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करने वाली क्षमता निर्माण के परोक्ष लाभ (रोजगार निर्माण, क्षमता में सुधार) हो सकते हैं।
इकोलॉजिकल सस्टेनेबल इंटेंसीफिकेशन और इकोनॉमिक डिजायरेबल डाइवर्सिफिकेशन के लिए स्थान/क्षेत्र विशेष के खेती के पैटर्न को अपनाना जरूरी है। इसके लिए कृषि-जलवायु और मृदा प्रोफ़ाइल के अनुसार विशेषग्यता और तुलनात्मक लाभों पर ध्यान देना बहुत महत्वपूर्ण है। यहां चुनौती इस बात की है कि खाद्य क्षेत्र में अलग-अलग स्किल सेट्स वाले विभिन्न एक्टर्स को एकीकृत किया जाए और नवाचार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हुए एक मल्टीडिस्प्लीनरी तरीके को अपनाया जाए। संस्थागत ढांचे और स्किल के विकास पर जोर डालते हुए एक क्लस्टर तरीके को अपनाकर ऐसी बहुत सी समस्याओं को सम्बोधित किया जा सकता है जिनका सामना क्षेत्र कर रहा है।
इस क्षेत्र में मानव संसाधनों और स्किल सेट्स की योजना बनाने के लिए कम से कम निजी क्षेत्र में काम करने वाले कुल लोगों की संख्या और उनके काम करने की गुणवत्ता का एक सामान्य अनुमान लगाने की आवश्यकता है. चूंकि तकनीक, प्रसंस्करण और मार्केटिंग स्पेस और तकनीक पर निवेश आदि जगहों पर निजी क्षेत्र का प्रभुत्व बढ़ते जाने की संभावना है, इस लिहाज से स्किल्ड मैन पॉवर और शोध इस क्षेत्र की प्रगति और समृद्धि के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा। निजी क्षेत्र (सिर्फ संगठित निजी क्षेत्र ही नहीं) में स्किल्स का दायरा बहुत बड़ा है: जेनेटिक विशेषज्ञों से लेकर ट्रैक्टर मैकेनिक तक, सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ से लेकर इन्सेक्टिसाइड छिड़कने वाले व्यक्ति तक, डाटा वैज्ञानिक से लेकर वेक्सीनेटर तक.इसलिए अगले कदम के रूप में निजी और सरकारी क्षेत्र समेत विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध मानव संसाधन का पता लगाने के लिए व्यापक सर्वेक्षण करवाना एक तार्किक कदम होगा।
एक और क्षेत्र जिस पर मानव संसाधनों की मैपिंग के लिहाज़ भविष्य में ध्यान देने की जरुरत है, वह है विभिन्न अनुशासनों में मौजूद स्किल सेट्स। ये स्किल सेट्स कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में इस्तेमाल होते हैं। इन स्किल सेट्स में वित्तीय क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी, जल संरक्षण और प्रबंधन, मौसम आधारित सेवायें, निवेश, खाद्य प्रसंस्करण, वेयरहाउसिंग और कोल्ड चेन्स मार्केटिंग से जुड़ी स्किल्स शामिल हैं। ये स्किल्स कृषि और खाद्य क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, लेकिन उनको बेहद महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। हमको यह बात स्वीकार करनी होगी कि सभी क्षेत्रों में विभिन्न स्किल्स का विकास होगा और उनका इस्तेमाल हर उस जगह हो सकेगा जहां अवसर होंगे। सिस्टम में किसी जगह मौजूद इन स्किल्स की एक सामान्य मैपिंग की जा सकती है। कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों की ठीक-ठीक संख्या पता करने के बजाय, उन घटनाक्रमों का एक युक्तिसंगत अनुमान लगाना कहीं अधिक कारगार होगा, जो क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। इस बात बहुत अहम है कि सिर्फ कृषि और भूमि से जुड़ी स्किल्स ही भावी योजना के लिए काफी नहीं है।