सालों पुराने तालाब कूड़े के ढेर में तब्दील हो रहे थे। लेकिन इन सिकुड़ते तालाबों को टेरी और यूबियल ने मिलकर सामुदायिक सहभागिता से पुनर्जीवित किया है। सबकी भागीदारी से ये तालाब अब पानी से लबालब भर गए हैं। घटते भूजल स्तर के लिए एक तालाब का बड़ा महत्व है। इस तरह के प्रयास जारी रहने चाहिए।
"ये जो तालाब है ना जी वो जिला नहीं बल्कि वर्ल्ड फेमस हो गया है। लोग यहाँ पर आते हैं और इस तालाब की वीडियो बनाते हैं। कुछ लोगों ने वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया और वहां लाखों लोग इसे देख चुके हैं। इस तालाब से हमारे गाँव का मान बढ़ गया है। हमारे बुज़ुर्ग बताते हैं कि ये लगभग 100 साल पुराना तालाब है। पहले रात में अँधेरे का फायदा उठाकर गाँव के लोग बोरी में कूड़ा भर के लाते और इस तालाब में डाल जाते थे। लोगों ने इसे कूड़ा डालने की जगह बना दी थी। जब बरसात होती तो तालाब का पानी बाहर आ जाता था और लोगो का यहाँ से निकलना मुश्किल हो जाता। लेकिन अब ये लोगों के सैर करने की जगह बन गयी है। यहाँ अब कोई कूड़ा नहीं डालता। हमारे बुज़ुर्ग भी इस तालाब के पुनर्जीवन पर खुश हैं।"
ये शब्द हैं मनप्रीत के। मनप्रीत कटानी कला गाँव, लुधियाना जिला (पंजाब), गाँव विकास समिति के सदस्य हैं।
मनप्रीत जिस तालाब का ज़िक्र कर रहे हैं वो रोड और गाँव के खेतों से सटा हुआ है। रोज़ाना हज़ारों लोग यहाँ से गुज़रते हैं। इनमें से कई लोग ठहर कर इस तालाब को देखते हैं। वो जानना चाहते हैं कि इस तालाब को किस तरह बनाया गया है।
न सिर्फ कटानी कला गाँव का तालाब चमक रहा है बल्कि लुधियाना और पटियाला (पंजाब) के 5 अन्य गाँव के तालाबों का भी पुनर्जीवन हुआ है। जिनमें लुधियाना के क़ुब्बा, मुंडिया खुर्द और पटियाला के रखरा, सौजा, ऊंचागाँव शामिल हैं। वर्तमान में 6 तालाबों का कार्य पूरा हो चुका है।
इन तालाबों को टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट) के सहयोग से, यूबियल (यूनाइटेड ब्रेवरीज लिमिटेड) ने "सामुदायिक सहभागिता द्वारा तालाब के कायाकल्प के माध्यम से जल संरक्षण" परियोजना के तहत, पुनर्जीवित किया है। यह परियोजना यूबियल ने अपनी कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) के तहत वॉटर न्यूट्रल कंपनी बनने के लक्ष्य को ध्यान में रख कर शुरू की। इस परियोजना के अंतर्गत पंजाब और राजस्थान के 8 गाँवों को चुना गया। जिमसें 6 पंजाब और 2 राजस्थान के गाँव हैं। जल संरक्षण परियोजना का उद्देश्य स्थानीय समुदाय की भागीदारी से घटते भूजल स्तर को रिचार्ज करना है।
इस परियोजना के तहत, चयनित तालाबों का सारा पानी पहले निष्कासित किया गया, तालाब को साफ़ किया गया, इससे तालाब में जल भंडारन की क्षमता में वृद्धि हुई। यह सुनिश्चित करने के लिए कि जलग्रहण क्षेत्र से अधिकतम वर्षा का पानी तालाब तक पहुंचे उसके लिए नालियों का निर्माण किया गया। जल ग्रहण क्षेत्र वो जगह है जहाँ से तालाब में पानी आता है। जल ग्रहण क्षेत्र हर तालाब का अलग अलग हो सकता है। जल ग्रहण क्षेत्र से तालाब तक पानी को लाने के लिए नालियों का निर्माण कार्य आवश्यक होता है। जिससे वर्षाजल प्रवाह में पानी की हानि न हो। इस परियोजना के अंतर्गत सभी तालाबों में नालियों के निर्माण कार्य उनके जल ग्रहण क्षेत्र के हिसाब से किया गया है। पानी के अतिप्रवाह को रोकने के लिए तालाबों के अंदर कृत्रिम रिचार्ज इंजेक्शन कुओं का निर्माण किया गया। जिसके द्वारा वर्षा जल फ़िल्टर होकर ज़मीन के अंदर जाता है और यह तेज़ी से भूजल - स्तर को ऊपर लाने में सहायक होता है। तालाब में सूखे पत्थरों की चिनाई की गयी है जिससे कृत्रिम इंजेक्शन कुओं में मिटटी का जमाव एवं तालाब के किनारों की मिटटी का कटाव न हो।
अपशिष्ट जल भूजल के लिए बहुत खतरनाक होता है। गाँव के अपशिष्ट जल को इस तरह प्रबंधित किया जा रहा है कि अपशिष्ट जल तालाब में नहीं जाता। घरों से निकला अपशिष्ट जल जो पहले सीधे तालाबों में जाता था जिससे पानी दूषित हो जाता था इसको ध्यान में रखते हुए परियोजना के अंतर्गत अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए ज़मीन के अंदर पाइप लाइन डालकर अपशिष्ट जल को सेटलिंग चैम्बर में एकत्रित किया गया। सेटलिंग चैम्बर का मुख्य कार्य अपशिष्ट जल में उपलब्ध गाद (Sludge) को नीचे सेटल करके पानी को आगे प्रवाहित करना है फिर वह पानी पक्के तालाब में एकत्रित किया जाता है और वो एकत्रित जल कृषि सिंचाई में आस पास के किसानों द्वारा उपयोग किया जाता है।
पटियाला जिले के रखरा गाँव के सरपंच हरदीप सिंह का कहना है, "हमारे इलाके में अब बरसात का पूरा पानी तालाब में जा रहा है। गाँव में तालाब को पुनर्जीवित करने का काम नवंबर 2018 में शुरू हुआ और यह पिछले साल पूरा हुआ। "
उनका कहना है कि अब लोग यहाँ सुबह की सैर करने आते हैं। इस तरह के तालाब हर गाँव में बनने चाहिए क्योंकि ये साफ़ है कि इस प्रयास से गाँव का भूजल स्तर बढ़ा है।
हरदीप बताते हैं कि उनका तालाब राज्य हाइवे के पास है। सिंचाई विभाग ने इस परियोजना को सराहा है और नहर के पानी के कनेक्शन को इस तालाब के साथ जोड़ दिया है जिससे कि इस तालाब में पूरे साल पानी रहेगा और भूजल का स्तर कम नहीं होगा।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, लुधियाना जिले के लिए भूजल विकास की स्थिति 170% (जिले का शुद्ध भूजल उपलब्धता 203448 ham और सभी उपयोगों के लिए मौजूदा सकल भूजल ड्राफ्ट 345504 ham है) है, पटियाला जिले के लिए भूजल विकास की स्थिति 195% (जिले की शुद्ध भूजल उपलब्धता 149083 ham और सभी उपयोगों के लिए मौजूदा सकल भूजल ड्राफ्ट 291165 ham है) है । इसी तरह, अलवर जिले के लिए भूजल विकास की स्थिति 167% (जिले का शुद्ध भूजल उपलब्धता 794.82 mcm है और सभी उपयोगों के लिए मौजूदा सकल भूजल मसौदा 1323.87 mcm है) है, इन सभी क्षेत्रों में भूजल विकास की स्थिति ये बताती है कि वे अतिसक्रिय क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। मतलब भूजल दोहन ज़रूरत से अधिक किया गया है। इस क्षेत्र में भूजल का स्तर गिर रहा है। यह जल तनाव के क्षेत्र में शामिल है। इस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है।
टेरी और यूबियल ने मिलकर इस परियोजना की शुरुआत 2018 में की। शैलेन्द्र कुमार त्रिपाठी (फील्ड मैनेजर, टेरी) का कहना है इस परियोजना की शुरुआत में उन्होंने पहले समुदाय को एकत्रित कर जागरूक करने का काम किया और इसमें दीवार पर लेखन भी शामिल है। इस परियोजना को लागू करने के लिए ग्रामपंचायत से अनापत्ति पत्र लिया गया और फिर ग्राम विकास समिति का गठन किया गया। तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए ग्राम विकास समिति को प्रशिक्षण भी दिया गया और ग्राम विकास समिति के सहयोग से ही श्रमिकों और निर्माण सामग्री की व्यवस्था की गयी।
शैलेन्द्र कुमार त्रिपाठी का कहना है कि "हमारे देश के अनेक गाँवों में परम्परागत कुएं, बावड़ी, तालाब बने हुए हैं। हम इन स्त्रोतों की अनदेखी कर रहे हैं। जल के कई स्त्रोत कूड़ा घर में तब्दील हो चुके हैं और हो रहे हैं। आज सभी औद्योगिक इकाइयां सामुदायिक सहभागिता (CSR) के तहत पैसा खर्च कर रही हैं और इकाईयों को भी जल संरक्षण के लिए आगे आना चाहिए।"
शैलेन्द्र का कहना है कि "इस परियोजना का मॉडल कांसेप्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप है। जिसमें ग्रामपंचायत, समुदाय, सरकारी अधिकारियों, यूबियल और टेरी सभी ने अपनी अपनी सहभागिता निभाते हुए इस परियोजना को लागू किया। इस योजना के शानदार परिणाम हमारे सामने हैं। जब हम पार्टनरशिप के तहत काम करते हैं तो इसमें सभी की स्वतः एक भूमिका तय हो जाती है। इस परियोजना को शुरू करने के लिए सबसे पहले हमने ग्राम विकास समिति का गठन किया जिसमें गाँव के चुनिंदा लोगों के अलावा ग्राम पंचायत सदस्य भी शामिल हैं। इस परियोजना की सभी गतिविधियों में फंडिंग एजेंसी यूबियल, टेरी और वीडीसी सबने सामान रूप से अपनी भागीदारी निभाई।"
शैलन्द्र बताते हैं कि इस तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए वैज्ञानिक मूल्यांकन किया गया। पहले रेनफॉल डाटा के आधार पर, भूमि उपयोग पैटर्न, इन्फ़्लिटरेशन रेट का अध्ययन किया गया। जलग्रहण क्षेत्र के आधार पर तालाब की क्षमता तैयार की गयी ताकि तालाब में पानी ओवरफ्लो न करे। कृत्रिम इंजेक्शन वेल्स तालाब की क्षमता के हिसाब से हर गाँव में अलग है। रिचार्ज इंजेक्शन वेल्स बनाने बहुत ज़रूरी थे दरअसल 8 या 10 मीटर तक तो ज़मीन के अंदर पॉलीथिन या अन्य अपशिष्ट होता है जिसकी वजह से ग्राउंड वॉटर अच्छी तरह से रिचार्ज नहीं हो पाता। इसके लिए वॉटर टेबल का आकलन किया गया और उसी के आधार पर कृत्रिम कुओं को निर्मित किया गया। वॉटर टेबल आकलन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कृत्रिम कुओं के निर्माण में।
तालाब निर्माण बहुत पुरानी परंपरा है। लेकिन पहले के भूमि उपयोग और आज के भूमि उपयोग में बहुत ज़्यादा अंतर आया है। पहले गाँव में पक्की संरचनाएं कम थी, वन क्षेत्र/ कृषि क्षेत्र अधिक था। अब उन्ही गाँव में पक्के निर्माण कार्य हो गए हैं, कृषि ज़मीन पर औद्योगिक गतिविधियां हो रही हैं। जिसके कारण आज के परिप्रेक्ष्य में भूमि उपयोग में बहुत परिवर्तन आया है। साथ ही भूमि की परतों में भी परिवर्तन आया है। इसे देखते हुए जल ग्रहण का वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक हो गया है।
प्रफ्फुल पराशर एग्जीक्यूटिव, सीएसआर (UBL) कहते हैं कि "पंजाब के दोनों जिले लुधियाना और पटियाला जल तनाव जिले के अंतर्गत आते हैं। और साथ ही औद्योगीकरण भी तेज़ी से बढ़ रहा है। हमारी जैसे पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनी पानी पर निर्भर रहती है साथ ही पानी के रिड्यूज़, रियूज़ और रिचार्ज तरीकों का भी हम पालन करते हैं। फैक्ट्री परिसर के बाहर भी हम पानी बचाने के तरीकों को बढ़ावा देते हैं। हमने अपने कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (Corporate social responsibility) के तहत ये लक्ष्य रखा है कि 2025 तक यूनाइटेड ब्रुअरीज लिमिटेड (UBL) पानी के इस्तेमाल में तटस्थता (water neutral) दिखाए। टेरी के सहयोग से पंजाब और राजस्थान में चलाया जा रहा यह प्रोजेक्ट हमें 2025 तक वॉटर न्यूट्रल कंपनी बनने में मदद करेगा। इस तरह के तालाब न सिर्फ हमारे जैसी कंपनी बल्कि गाँव की आर्थिक और सामाजिक संरचना के लिए बहुत ज़रूरी हैं।"