सौर स्ट्रीट लाइट से असम के गाँव में रहने वाले इन लोगों की ज़िंदगी में बदलाव आए हैं। गाँव में नई दुकानें खुल गयी हैं। जिससे लोगों को रोज़गार के अवसर भी मिले हैं। महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं।
हाथी घरों को तोड़ देते थे। न सिर्फ़ हमारे अंदर हाथियों का खौफ़ था बल्कि रात को रोड़ पर सांप के काटने का भी डर बना रहता था और ऊपर से चोरी का डर। लेकिन अब ये डर हमारे अंदर से ख़त्म हो गया है। गाँव में सौर प्रकाश ने हमें इस डर से छुटकारा दिलवाया है। महिलाएं भी सौर प्रकाश की वजह से सुरक्षित महसूस करती हैं। ये कहना है भौनी सोनोवाल का। भौनी नापथार गाँव में रहती हैं। नापथार गाँव काज़ीरंगा नेशनल पार्क (असम) के क्षेत्र में पड़ता है।
भौनी के अलावा गाँव के दूसरे लोग भी इस बदलाव से खुश हैं। लोगों का कहना है कि अँधेरे में सड़क पर चलना मुश्किल हो जाता था। अँधेरे की वजह से सड़क पर गड्ढे और पानी भरने के कारण लोग गिर जाते थे। चोट लगने का खतरा हमेशा बना रहता था। रात में हाथियों का झुंड गाँव के इसी रोड़ से होकर गुज़रता था और कई बार हाथियों ने लोगों के घरों को भो तोड़ा। कई लोग इस वजह से ज़ख़्मी भी हुए।
लेकिन अब गाँव वालों को इस समस्या से छुटकारा मिल चुका है। गाँव वालों को इस समस्या से छुटकारा दिलवाने में नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (NRL) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (TERI) ने मदद की। एनआरएल और टेरी ने ''सौर लाइट परियोजना'' के अंतर्गत ग्रामीणों के हित के लिए सौर ऊर्जा आधारित स्ट्रीट लाइट लगाने का काम किया। टेरी ने चार गाँवों लखीपुर, नापथार, बर्मन और लाटिकुचापोरी में सौर लाइट लगाने का काम मार्च 2019 में किया। और यह सभी गांव जिला गोलाघाट, राज्य असम में स्थित हैं। इस परियोजना में एनआरएल ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी अनुदान राशि (CSR Fund) के तहत वित्तीय सहायता प्रदान की।
गाँव में सौर स्ट्रीट लाइट लगने के बाद रात में गाँव में आवागमन आसान हो गया है। लोग रात में खाना खाने के बाद सड़क पर रौशनी होने के कारण अब आसानी से टहल सकते हैं। इससे सामाजिक मेलजोल बढ़ गया है। गाँव में सौर लाइट्स की रौशनी में विद्यार्थी पढ़ते हुए देखे गए क्योंकि घरों में पर्याप्त रौशनी न होने के कारण विद्यार्थी घर के सामने उपलब्ध सौर ऊर्जा लाइट की रौशनी में पढ़ाई कर लेते हैं। गाँव में नई दुकानें खुल गयी हैं। जिससे लोगों को रोज़गार के अवसर भी मिले हैं। रात में युवा लोग कैरम गेम भी खेलते हैं। और महिलाएं सौर प्रकाश की वजह से सुरक्षित महसूस करती हैं।
इस परियोजना के अंतर्गत लगभग 366 सौर ऊर्जा लाइटों को चार गावों में लगाया गया है। लाइटों की सुरक्षा और मरम्मत को ध्यान में रखते हुए स्थानीय इच्छुक युवाओं और तक्नीशियनों को प्रशिक्षण भी दिया गया ताकि सभी लाइटें सुरक्षित रहें और सुचारु रूप से कार्य करें।
इन सौर लाइटों के लगने से ग्रामीणों को बहुत राहत मिली है लेकिन एक और समस्या है जिसका हल ग्रामीणों ने खुद ही ढूंढ लिया है। बरसात के मौसम में पेड़ों की टहनियों की लम्बाई में तेज़ी से वृद्धि होती है और उनकी छाया सौर पैनल पर पड़ने से सोलर बैटरी पूर्णतया चार्ज नहीं होती है। इस कारण लाइट्स के जलने का समय कम हो जाता है। इस समस्या के समाधान के लिए ग्रामीण लोग अपने अपने पेड़ों की टहनियों की कटाई और छटाई खुद ही कर लेते हैं।
सौर स्ट्रीट लाइट में 24W का LED बल्ब लगा है और रोज़ाना लगभग 10 से 12 घंटे की रौशनी जलती है। सौर स्ट्रीट लाइट्स में स्वतः अँधेरा होने पर जलने तथा सूर्य के प्रकाश की किरण निकलते ही बंद हो जाने का तकनीकी प्रावधान है। एनआरएल के CSR फंड के तहत न सिर्फ़ लाइटें लगाने बल्कि मरम्मत के कार्य पर भी व्यय किया जा रहा है। ताकि लाइटें आने वाले 4 वर्षों तक सुचारु रूप से कार्य करें। यदि 366 सौर ऊर्जा लाइटों को पारम्परिक बिजली की लाइट की तुलना के साथ गणना करें तो लगभग 3.26 MWh बिजली की प्रतिवर्ष बचत होती है।
लखीपुर गाँव से श्रीमती वीणा हज़ारिका का कहना है कि सौर ऊर्जा लाइट लगने से गाँव का विकास हुआ है अक्सर शाम में आसपास के गाँव के लोग सौर ऊर्जा लाइट को देखने के लिए आते हैं।
इस परियोजना के फायदों और गाँव के विकास को देखते हुए, दूसरे गाँव से भी सौर ऊर्जा स्ट्रीट लाइट्स को लगाने की मांग बढ़ने लगी है। इसी को ध्यान में रखते हुए NRL ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में, TERI के सहयोग से 220 सौर लाइटों को पोंका गाँव और अन्य गांवों में लगाने का फैसला लिया है।