सौर शक्ति ने बदली चित्रकूट के नाविकों की ज़िंदगी। सोलर पैनल अब सिर्फ़ घरो के लिए नहीं बल्कि नाविकों के लिए भी फायदेमंद है।
महावीर चित्रकूट का रहने वाला है। महावीर का पुश्तैनी घर भी चित्रकूट में ही है। मंदाकिनी नदी के रामघाट से रोज़ाना महावीर की ज़िंदगी शुरू होती है। प्रतिदिन सुबह 5 बजे तीर्थ यात्रियों को घाट घाट का भ्रमण करवाना ही उसका पेशा है। और यही उसकी कमाई का एक मात्र ज़रिया है। नाविकि का यह काम उसके पूर्वजों के वक़्त से चला आ रहा है। महावीर को भी इस काम में महारत हासिल है। उसका परिवार महावीर के इस ज़ज़्बे का कायल है। महावीर का परिवार ज़्यादा बड़ा नहीं है, माता-पिता, पत्नी और दो बच्चे।
बरसात के दिनों में भी महावीर पहाड़ी नालों से उफनती मंदाकिनी की अल्हड़ लहरों से बेख़ौफ़ रहता था। लेकिन बदलते परिवेश में महावीर के सामने कम कमाई की दिक्कतें शुरू होने लगी। उसके पास घर के निर्वाह का कोई अन्य ज़रिया भी नहीं है। बढ़ती महंगाई में परिवार का खर्च उठाना चुनौती बनने लगा था। गर्मी का मौसम और ऊपर से कड़ी धूप में तीर्थ यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने में महावीर के प्राण सूखने लगते। इसके कारण महावीर का स्वास्थ्य भी धीरे धीरे बिगड़ने लगा।
महावीर के बिगड़ते स्वास्थ्य और घटती आमदनी ने उसको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर यही सब जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब परिवार की आजीविका चलाना मुश्किल होगा। इसी उधेड़बुन के बीच, एक दिन महावीर जब मंदाकिनी के तट पर अपने स्वास्थ्य और पारिवारिक ज़िंदगी की बदहाली को लेकर चिंतित बैठा था तभी कुछ लोग उसके पास आए और बोले "दादा हमें आपसे कुछ बात करनी है।" महावीर उनकी सादगी भरी बातों से प्रभावित होकर "जय कामतानाथ" कहते हुए उनसे मुखातिब हुआ। उन लोगों ने महावीर को अपना परिचय देते हुए बताया कि हम ऊर्जा एवं संसाधन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) से आएं हैं। हम नदियों में परंपरागत रूप से चलने वाली नावों में सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली लिथियम बैटरी एवं उससे चलित ट्रोलिंग मोटर को जोड़कर परंपरागत नाव को मोटर चालित नाव में बदलते हैं। जिससे कम मेहनत में ज्यादा आय के साथ प्रदूषण से भी मुक्त्ति मिलती है।
महावीर ने उनकी बात मान ली। लेकिन उसके मन में एक सवाल पैदा हुआ कि इस काम के लिए हम नाविकों को क्या करना होगा? महावीर को विचारों में डूबा देख, उन लोगों ने महावीर को बताया कि इस परियोजना में नाविकों को अपनी नाव में ट्रोलिंग मोटर लगाने में सहयोग एवं सोलर चार्जिंग स्टेशन के लिए उपयुक्त एवं सुरक्षित स्थान देना होगा। ये सुनकर महावीर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। टेरी की तरफ से आए लोगों ने शीघ्र ही घाट के अन्य नाविकों को भी बुलाया और एक सामूहिक बैठक में बताया कि परंपरागत नाव को मोटर नाव में कैसे बदला जा सकता है। साथ ही ये भी स्पष्ट किया की नाव में लगने वाली बैटरी को चार्ज करने के लिए नदी के किनारे सोलर पावर प्लांट एवं चार्जिंग स्टेशन की स्थापना करनी होगी।
इस प्लांट की सुरक्षा और इसे चलाने के लिए आप में से किसी को कुछ तकनीकी परिक्षण लेते हुए ज़िम्मेदारी भी लेनी होगी। नदी के पास पावर प्लांट लगाने से जरूरत पड़ने पर बैटरी बदलने में सुविधा भी रहेगी। बैठक में सामूहिक सहमति मिलने के बाद शीघ्र ही कुछ ही दिनों में नावों को मोटर से चलने वाली नावों में बदल दिया गया।
महावीर ने बताया कि पहले यात्रियों को भ्रमण कराने के लिए दिन भर में नाव के तीन फेरा ही लग पाते थे, जब से नाव मोटर चालित हुई है तब से छः फेरे तक लग जाते है तथा हमारी आय 5000 - 6000 रुपये प्रतिमाह तक बढ़ गयी है। नाव की गति तेज़ होने तथा यात्रा की सुगमता से प्रसन्न होकर अब उतराई (बख़्शीश) भी ज्यादा मिलने लगी है, जहां पहले 50 रुपये तक मिला करती थी, अब 100 रुपये तक मिल जाती है। महावीर ने कहा कि हमारे जीवन में इस तरह की सहूलियत लाने के लिए हम टेरी को धन्यवाद देते हैं।
नाविकों के साथ यह कार्यक्रम टेरी के एक प्रोजेक्ट "आजीविका संवर्धन के लिए ऊर्जा का उपयोग" के तहत किया जा रहा है। इसके तहत वाराणसी एवं चित्रकूट के नाविकों को जोड़ा गया है। टेरी के इस प्रोजेक्ट को चलाने के लिये इंडस टावर्स (Indus Towers) के सीएसआर पहल के तहत निरंतर आर्थिक सहयोग मिल रहा है।
इस प्रोजेक्ट से जुड़े हुए वाराणासी के नाविक विरेन्द्र निषाद का कहना है कि "डीजल चालित नाव की जगह लिथियम बैटरी आधारित मोटर चालित नाव से लगभग 4 लीटर डीजल की बचत प्रतिदिन हो रही है जिससे हमें सभी खर्च लेने के बाद सीधे 200 रुपये प्रतिदिन का लाभ होता है, साथ ही रख-रखाव एवं मरम्मत के कार्य में भी कमी आई है। नाव खेने में श्रम नहीं लगता है और हम यात्रियों को पूरा समय दे पाते है जिस कारण यात्रियों से नाविकों को ज्यादा उतराई मिल जाती है।"
वाराणासी में गंगा नदी एवं चित्रकूट में मंदाकिनी नदी पर नाविक नाव से तीर्थ यात्रियों को घाट घाट का भ्रमण कराते हैं। वाराणासी में जहाँ 84 घाट हैं वही चित्रकूट में 13 घाट। वाराणासी में सभी घाटों का भ्रमण करने के लिए लगभग 5 किलोमीटर एवं चित्रकूट में लगभग 2.5 किलोमीटर तक नाव की यात्रा करनी पड़ती है। वाराणासी में ज्यादातर नाव डीजल इंजिन चालित है जिससे वायु एवं ध्वनि प्रदूषण की समस्या पैदा होती। डीजल इंजिन का शोर इतना ज्यादा होता है कि जब नाविक यात्रियों को घाटों का वर्णन करते है तो यात्रियों को समझने में बहुत मुश्किल होती है साथ ही वायु प्रदूषण के कारण दम घुटने लगता है। इंजिन से हो रहा तेल का रिसाव जो नदी में प्रदूषण को बढ़ाता है साथ ही जल जंतु को भी नुकसान पहुंचाता है। जो नाव मानव चालित हैं उसमें यात्रा का समय बहुत ज्यादा होने के कारण, नाविक थक जाते है एवं घाटों एवं फेरो की संख्या सीमित हो जाती है। चित्रकूट में ज्यादातर नाव मानव चालित हैं।
लिथियम बैटरी आधारित मोटर चालित नाव, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से मुक्त है। नाव को चलाने के लिए प्रोपेलर के साथ ट्रोलिंग मोटर लगाई गई है जिससे नाव की गति आवश्यकतानुसार कम ज्यादा की जा सकती है और इससे यात्रियों की यात्रा आरामदायक हो जाती है। इसमें लगी लिथियम बैटरी का भार महज 28 किलोग्राम है। इस बैटरी को नाव से सोलर चार्जिंग स्टेशन तक लाना ले जाना आसान है। तथा लिथियम बैटरी भी 2 घंटे में पूरी तरह चार्ज हो जाती है। अभी नाविक इस परियोजना में भागीदारी के तहत अपनी पारम्परिक नाव एवं सोलर चार्जिंग स्टेशन के लिए उपयुक्त एवं सुरक्षित स्थान देते है। अधिक से अधिक नाविकों को इस परियोजना से जोड़ने के लिए आंशिक धनराशि की अपेक्षा भी की गई है।
परियोजना के नियमित परिचालन के लिए चयनित ऊर्जा उद्यमी बैटरी चार्जिंग की जिम्मेदारी सँभालते हैं। बैटरी के प्रत्येक चार्जिंग के लिए नाविक ऊर्जा उद्यमी को तय राशि का भुगतान करता है। इस राशि का एक भाग उद्यमी अपने जीवकोपार्जन के लिए रखता है एवं शेष भाग से सोलर चार्जिंग स्टेशन जगह का किराया एवं अन्य आवश्यक खर्चों की पूर्ति की जाती है। सभी उपकरणों के पांच साल का रख-रखाव एवं मरम्मत की जिम्मेदारी उपकरण आपूर्तिकर्ता की है।