पिछले महीने उत्तर भारत में वायु प्रदूषण असहनीय स्तर पर पहुंच गया था। ज़हरीली हवा को देखते हुए दिल्ली-एनसीआर में जन स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा कर दी गयी थी। निर्माण कार्यों और पूरी ठंड के दौरान पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पर वायु प्रदूषण की समस्या सिर्फ़ दिल्ली तक ही सीमित नहीं है। भारत के दूसरे शहर भी वायु प्रदूषण से हांफ रहे हैं। दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के प्रयागराज (इलाहबाद), कानपुर, आगरा, और लखनऊ भी प्रदूषित शहरों की श्रेणी में आते हैं।
वायु प्रदूषण एक जटिल और बड़ा मुद्दा है जो सिर्फ़ नागरिकों के स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इनडोर और आउटडोर दोनों तरह से वायु प्रदूषण भारत में मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। सतत उपायों के साथ, कुछ वर्षों में हवा की गुणवत्ता में बदलाव लाया जा सकता है।
पिछले महीने जब प्रदूषण पर बहस की शुरुआत हुई तो ये कहा गया कि दिल्ली में वायु प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली का योगदान है। सर्दियों के दौरान पीक स्तर पर पहुँचने वाले वायु प्रदूषण को फसलों के अवशेष को जलाने को नियंत्रित कर रोका जा सकता है। पराली को जलाने की बजाए फसल अवशेष के ब्रिकेट बनाए जा सकते हैं। थर्मल पावर प्लांटों में कोयले के स्थान पर 10-20% तक इन्हें जलाया जा सकता है। अगर सरकार अभी यह घोषणा कर दे कि जो ब्रिकेट बनेंगी उन्हें सरकार अगले चार सालों के दौरान खरीदेगी तो बाज़ार की ताकतें उसे वितरित करेंगी। निजी निवेशक गाँव स्तर पर छोटे ईट बनाने वाले संयंत्र लगाएंगे और किसानों को पराली के लिए एक आकर्षक कीमत भी देंगे। इससे किसानों को कुछ अतिरिक्त आय होगी। अभी थर्मल प्लांट आयातित कोयले का उपयोग कर रहे हैं और अगर आयातित कोयले की जगह ब्रिकेट का इस्तेमाल करेंगे तो इसकी कोई अतिरिक्त लागत नहीं होगी। इस तरह पराली जलाने की समस्या भी हल हो जाएगी।
एक और सकारात्मक विकास यह है कि बीएस 6 मानक ईंधन अगले साल देश भर में उपलब्ध होगा। ऑटोमोबाइल कंपनियां बीएस 6 मानक वाले वाहनों को बेच रही होंगी। यह वर्तमान यूरोपीय मानक है और ऑटोमोबाइल से वायु प्रदूषण अब यूरोप में एक गंभीर मुद्दा नहीं है। हालांकि, क्लीनर ईंधन से लाभ हमें अगले कई वर्षों में नज़र आएंगे, क्योंकि पुराने वाहनों का इस्तेमाल जारी रहेगा। पुराने वाणिज्यिक वाहन; ट्रक, बस, टेम्पो, तिपहिया और टैक्सी, निजी वाहनों की तुलना में कहीं अधिक प्रदूषण का कारण बनते हैं। जो अपना पुराना वाहन बदलना चाहें, उन्हें नया वाहन खरीदने के लिए आकर्षक इंसेंटिव दिया जाए और पुराने वाहन को स्क्रैप किया जाए। इससे पुराने वाहनों को छोड़ने वालों की संख्या बढ़ेगी। वाहनों की खरीद पर 50% जीएसटी रिफंड होना चाहिए। शुरुआत में, बीएस 1, 2 और 3 के सभी वाणिज्यिक वाहनों को स्क्रैप किया जा सकता है। इन सभी वाहनों को दो-तीन सालों के अंदर स्क्रैप करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके बाद, सभी बीएस 4 वाहनों को कवर किया जा सकता है। इस तरह गंभीर मंदी का सामना कर रहे ऑटो उद्योग को काफी मदद मिलेगी।
भारत में करोड़ों परिवार खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, और गोबर के उपलों पर निर्भर रहते हैं। इस तरह के ईंधनों को जलाने से होने वाला धुआं खतरनाक घरेलू प्रदूषण का कारण होते हैं और महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए उज्जवला कार्यक्रम के तहत, सभी घरों में रसोई गैस सिलेंडर और कनेक्शन दिए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य शहरों में गैस की आपूर्ति और सभी ग्रामीण घरों में एलपीजी सिलेंडर का उपयोग बढ़ाना है।
अगर देश में सभी खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग करते हैं जैसे कि गैस /बिजली, तो वायु प्रदूषण का लगभग एक-चौथाई हिस्सा कम हो जाएगा। इस परिवर्तन को अगले तीन सालों के भीतर लाया जा सकता है। और इसके लिए सब्सिडी देनी होगी ताकि गरीबों को गैस सिलेंडर 350 रुपये प्रति सिलेंडर मिले। यह तेल कंपनियों द्वारा आंतरिक क्रॉस-सब्सिडी या सरकार की सब्सिडी द्वारा किया जा सकता है। इसमें जितनी भी लागत आएगी उसका फ़ायदा महिलाओं के जीवन स्तर सुधरेगा।
गैस ग्रिड सभी शहरी क्षेत्रों को कवर करने के बाद, पूर्ण मांग को पूरा करने के लिए किसी भी प्रतिबंध के बिना औद्योगिक और वाणिज्यिक उपयोग के लिए गैस प्रदान करना संभव होना चाहिए। इस तरह की आपूर्ति के लिए सब्सिडी की ज़रूरत नहीं है। फिर प्रदूषणकारी ईंधन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, और प्रतिबंध आसानी से लागू हो सकता है क्योंकि लकड़ी, कोयला, और गोबर के उपलों का वैकल्पिक स्वच्छ ईंधन आसानी से उपलब्ध है।
औद्योगिक गतिविधि से निकलने वाले वेस्ट रसायन भी वायु को प्रदूषित करते हैं। हवा में PM2.5 की उच्च संख्या का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इसमें शामिल रसायन अक्सर कैंसर की उच्च घटना का कारण होते हैं। देश में औद्योगिक समूहों में कचरे का लेखा-जोखा और मानचित्रण इस समस्या से निपटने के लिए एक शुरुआती बिंदु हो सकता है। इसे जल्द से जल्द शुरू और पूरा किया जाना चाहिए। इसके बाद, लागत-प्रभावी वेस्ट मैनेजमेंट किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वायु प्रदूषण कम से कम हो। सौभाग्य से, वेस्ट मैनेजमेंट की लागत में गिरावट आई है और यह सस्ती हैं। सभी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें इस कीमत को चुकाना होगा।
पिछले कुछ वर्षों में, वायु प्रदूषण के स्रोतों की हमें बेहतर वैज्ञानिक जानकारी है। निगरानी स्टेशनों का एक नेटवर्क है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या करना चाहिए, इसकी भी बेहतर समझ है। अगर हम इन बिंदुओं पर ध्यान दें तो भारत की हवा को स्वच्छ बनाने की दिशा में हम तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं।