प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहण के बाद एक नई जगह पर विस्थापन और पुनर्वास पर महिलाओं की धारणा को समझने के लिए टेरी का एक अध्ययन ।
गौतमबुद्धनगर जिले की जेवर तहसील के रोही गांव की महिलाएं चिंतित हैं क्योंकि उनके सामने भविष्य की अनिश्चितता बनी हुई है। परंपरागत रूप से, इन महिलाओं ने सामाजिक मानदंडों की सीमा के अंदर ही अपना जीवन बिताया है। ये औरतें बुज़ुर्गों, विशेष रूप से पुरुषों के सामने घूँघट करती हैं (पल्लू से मुँह को ढकना)। सभी घरेलू कामों को करने के अलावा, महिलाएं गायों और भैंसों को पालने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाती हैं - खेतों से चारा लाती हैं, मवेशियों को खिलाती हैं और दूध निकालती हैं, गाय के गोबर के उपले बनाती हैं और कई बार दूध भी बेचती हैं। अधिकांश महिलाएँ कृषि क्षेत्र में भी बुवाई, निराई और फसल काटने का काम करती हैं।
2019 की गर्मियों में इनके जीवन में एक बदलाव आना शुरू हुआ जब रोही गांव की सारी ज़मीन उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्धनगर के जेवर जिले में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (RFCTLARR Act) के तहत अधिग्रहित कर ली गयी। रोही से लगभग 10 किलोमीटर दूर 'जेवर बांगर' नामक जगह पर जल्द ही गाँव की आबादी को स्थानांतरित कर दिया जाएगा। कृषि भूमि का मुआवजा शीर्षक धारकों (सामान्यतः पुरुष) को दिया गया है परन्तु जिला मजिस्ट्रेट ने अभी तक भी अधिनियम की दूसरी अनुसूची के अनुरूप प्रत्येक प्रभावित परिवार के लिए R&R अवार्ड पारित नहीं किया है। हालांकि, जन सुनवाई के दौरान R&R एंटाइटेलमेंट के लिए ग्रामीणों को मौखिक रूप से सूचित किया गया है।
कृषि भूमि के विमुद्रीकरण से महिलाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। खेत की भूमि के लिए नकद मुआवजे को शीर्षकधारियों के बैंक खाते में स्थानांतरित किया गया है, जो सामान्यतः पुरुष ही होते हैं। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश महिलाएं परिवार द्वारा प्राप्त मुआवज़ें की राशि से अनभिज्ञ हैं और पति/ससुर द्वारा इस राशि को किन उद्देश्यों पर खर्च किया जा रहा है इसकी भी इन्हें जानकारी नहीं है। महिलाओं की एक बड़ी संख्या ने भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही के तहत जिला प्रशासन द्वारा आयोजित सार्वजनिक सुनवाई में भाग नहीं लिया था क्योंकि या तो उनको इसकी जानकारी नहीं थी या उनको इस कार्यवाई में हिस्सा लेने के लिए पुरुषों द्वारा हतोत्साहित किया गया था। परम्परागत रूप से, कृषि कमाई का स्रोत होने के साथ-साथ एक परिवार के सामाजिक स्थान को भी दर्शाती हैं। समाज में ज़मीन को बेचना एक परिवार की साख से जोड़ कर देखा जाता है। ज़मीन को बेचना यानी उसकी आर्थिक स्थिति में गिरावट आयी है। भूमि परिवार में किसी भी पुरुष सदस्य के नाम हो परन्तु महिलाओं और बच्चों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहती है और सामाजिक-सांस्कृतिक सन्दर्भ में महिलाओं को जगह प्रदान करती है। कृषि भूमि का अधिग्रण मतलब परिवार के आर्थिक भविष्य में महिलाओं के फैसलों का कम होना, शक्तिहीनता की भावना और पुरुषों पर उनकी आर्थिक निर्भरता बढ़ना।
महिलाओं के जेवर बांगर में स्थानांतरण से उनकी उत्पादक भूमिका का अंत होगा। अभी तक खेतों में काम करके, घर के उपयोग और बिक्री के लिए दुधारू मवेशियों का दूध निकालकर महिलाएँ घर की आर्थिक स्थिति में योगदान देती रही हैं। जिस समाज में पहले ही रोज़गार में महिलाओं की भागीदारी को नकारा जाता है, ऐसे में पारंपरिक उत्पादक रास्तों के बंद होने से महिलाएँ घरेलू कामों तक ही सीमित हो जाएंगी। विस्थापन पर मौजूद साहित्य बताता है कि घरों के काम तक सीमित होने के बाद औरतों के फैसले लेने की भूमिका में कमी आती हैं।
भूमिहीन महिला-प्रधान परिवार जो कि जीविका के लिए दुधारू मवेशियों या खेती-मजदूरी पर निर्भर रहती हैं, गाँव में मौजूद कमाई के स्त्रोत छूट जाने के बाद कठिनाई का सामना करेंगी। पुनर्वास कॉलोनी में महिलाओं को खाली जमीन या सामान्य संपत्ति संसाधन मिलने की संभावना नहीं है जो कि गांव में उनके पास है। एक विधवा, जो दूध की बिक्री से अपने परिवार का खर्च उठाती है, ने मार्मिक रूप से कहा, "हमें एक भीख का कटोरा सौंप दिया गया है"। वास्तव में, कौशल विकास या आय सृजन के अवसरों का अभाव भविष्य में ग्रामीणों के लिए एक आर्थिक चुनौती बन सकता है।
अधिगृहित बॉडी, गौतमबुद्धनगर जिला प्रशासन के पुनर्वास नीति संबंधी प्रावधान, महिलाओं के निर्वासन को बढ़ावा दे रहे हैं। RFCTLARR अधिनियम, 2013 के तहत नौकरी के एवज में 5,00,000 रुपये का भुगतान और प्रत्येक विस्थापित परिवार को 50,000 रुपये परिवहन भत्ता दिया जा रहा है। यह अधिनियम 'परिवार' को एक विवाहित जोड़े के रूप में परिभाषित करता है जिसमें छोटे बच्चे और आश्रित भाई बहन भी शामिल हैं। हर वयस्क (चाहे गैर-शादीशुदा या बिना बच्चों के), साथ ही निर्जन, विधवा और तलाकशुदा महिलाओं को भी अलग परिवार के रूप में माना जाएगा। ऐसा बताया गया है कि विवाहित जोड़ों को दी जाने वाली राशी संयुक्त खातों के बजाय पति के खाते में जा रही है। 50 वर्ग मीटर के क्षेत्र में निर्मित घर की पेशकश के बजाय, विस्थापित परिवारों को 50 वर्ग मीटर भूखंड और मौजूदा घर के मलबे का दोगुना मूल्य पुनर्वास स्थल पर घर के निर्माण के लिए दिया जा रहा है।
प्लॉट को पतियों के नाम से पंजीकृत किया जाएगा और निर्माण के लिए नकदी भी उन्हें ही सौंपी जाएगी। अगर विस्थापित परिवारों को निर्मित घर नहीं मिलते हैं तो इससे महिलाओं की स्थिति संवेदनशील हो जाएगी क्योंकि निर्माण के लिए दी जाने वाली राशि पर पतियों का विशेषाधिकार होगा।
गौतमबुद्धनगर जिले में 5000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर जेवर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की योजना है, जिसके लिए चरणबद्ध तरीके से गांवों की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। महिलाओं पर विस्थापन के संभावित प्रतिकूल प्रभावों का शुरुआत से अध्ययन करने की आवश्यकता है, ऐसा न हो कि यह प्रभावित परिवारों के लिए एक त्रासदी बन जाए।
यह अध्ययन फरवरी 2020 में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) द्वारा उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले की जेवर तहसील के गाँव रोही में महिलाओं पर विस्थापन के संभावित प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए किया गया है। प्राथमिक डेटा को घरेलू सर्वेक्षणों, फोकस्ड ग्रुप डिस्कशन और प्रमुख सूचनादाताओं के साक्षात्कार के माध्यम से एकत्र किया गया है।