टेरी (द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट) के एक सर्वे के अनुसार मौजूदा कोविड-19 संकट के चलते लोगों के शहरों में यात्रा करने के तौर-तरीकों में बड़े बदलाव आएंगे।
ज़्यादातर भारतीय शहरों में परिवहन व्यवस्था कई वर्षों से कुछ कारणों से दिनप्रतिदिन बिगड़ती रही है। फलस्वरूप हमारे शहरों में वायु प्रदूषण, भीड़ भाड़ और कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि होती गयी। निजी वाहनों, कारों और मोटर साइकिल, की तेजी से वृद्धि और लगातार बिगड़ती सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के कारण लोगों के परिवहन व्यय में भी वृद्धि हुई है। भीड़भाड़ वाली सड़कों ने यात्रा में लगने वाले समय को बढ़ा दिया है। इसने हवा की गुणवत्ता को भी काफी ख़राब कर दिया है और अब सर्दियों के मौसम में भारत के शहरों में आसमान का बदरंग होना बहुत आम बात हो गई है। इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए उसके परिणाम बहुत कम और अल्पकालिक हैं। शहरों में बढ़ते माल यातायात ने भी भीड़भाड़ और वायु प्रदूषण को बढ़ा दिया है, परिणामस्वरूप, कई शहरों में दिन के दौरान मालवाहक वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित किया जाता है।
मौजूदा कोविड-19 संकट के चलते लोगों के शहरों में यात्रा करने के तौर-तरीकों में बड़े बदलाव आएंगे। सोशल डिस्टैन्सिंग पर ज़ोर देते हुए सरकार लॉकडाउन में ढील दे रही है। और इसे बनाए रखने के लिए सार्वजनिक परिवहनों में बैठने से जुड़े नियम तय किए हैं ताकि लोग एक दूसरे से उचित दूरी बना कर रखें। भारत को इन सभी बदलावों को अपनाना पड़ेगा। भीड़भाड़ वाले इलाकों से जुड़े जोखिमों और बस एवं मेट्रो रेल जैसे सार्वजनिक परिवहनों में पर्याप्त दूरी के नियमों के चलते लोग अब इनमें सफर करने से बचना चाहेंगे। ई-सेवाओं के उपयोग को बढ़ावा दिए जाने से शहरी माल ढुलाई की जरूरतें भी बदल जाएंगी।
टेरी ने हाल ही में एक सर्वे किया है। इस सर्वे में 51 शहरों के 400 से अधिक लोगों को शामिल किया गया। जिसके अनुसार -
- लगभग 35 प्रतिशत लोग लॉकडाउन के ख़त्म होने बाद अपने काम पर जाने के लिए यात्रा का तरीका बदल देंगे।
- लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद बसों और मेट्रो सेवा के इस्तेमाल में भी कमी आने का अनुमान है।
- साथ ही टैक्सी और ऑटो-रिक्शा जैसे वाहनों में भी लोग शेयरिंग में नहीं जाना चाहेंगे। इसकी जगह निजी वाहनों और मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन (आईपीटी) जैसे टैक्सी और ऑटो-रिक्शा के उपयोग में बढ़ोत्तरी होगी।
- छोटी यात्राओं के लिए साइकिल और पदयात्रा में बढ़ोत्तरी होगी।
- कुल मिलाकर यह अध्ययन कोविड -19 के बाद शहरों में निजी वाहनों की संख्या में बढ़ोत्तरी का संकेत देता है।
ज़्यादातर भारतीय शहरों में भीड़भाड़ और वायु प्रदूषण की समस्या आने वाले समय में और बिगड़ सकती है। देश के कई शहर इन समस्याओं से लम्बे समय से कई तरह से जूझ रहें है। भीड़ का बढ़ना, सीमित मल्टी-मोडल इंटीग्रेशन, अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, ख़राब फुटपाथ और साइकिल ट्रैक का अभाव आदि सभी प्रमुख शहरो की सामान्य समस्याएँ हैं। इससे वाहनों के कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसों के उत्सर्जन और ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि हुई है। हाल के वर्षों में सरकार ने सड़क परिवहन क्षेत्र को इन समस्याओं के समाधान के लिए कई उपायों को लागू किया है। कोविड -19 इस क्षेत्र के लिए कई नई चुनौतियां पैदा करेगा, विषेशकर उन महानगरों में जहां यात्रा की मांग पहले से ही उपलब्ध साधनों से अधिक है।
"कई शहरों में वायु प्रदूषण और भीड़-भाड़ की समस्या को कोविड और गंभीर बना देगा "
कोविड -19 महामारी के कारण लोगों की सामान्य जीवन शैली जैसे थम सी गई है और साथ ही लोगों को अपने जीवन के तौर-तरीकों और व्यवहार पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। पर्यावरण के प्रति जो हमारी ज़िम्मेदारी है, उसे हमें समझना होगा। महामारी ने हमारे जिन रोजमर्रा के कामकाजों को प्रभावित किया है और रोक दिया है, उसमें यातायात क्षेत्र और लोगों के यात्रा करने के तौर-तरीके भी शामिल हैं। निश्चित ही जैसे-जैसे देश इस बीमारी से बचने के लिए नए मापदंडो की ओर बढ़ेगा, यात्रा करने के तौर तरीके भी बदलेंगे ।
जैसे-जैसे शहर धीरे-धीरे लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दे रहे हैं वैसे-वैसे सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को पर्याप्त दूरियों के मानदंडों का पालन करते हुए अपनी सीमित क्षमताओं के साथ तालमेल बैठाना होगा। इन नियमों से टैक्सी और अन्य शेयरिंग ट्रांसपोर्ट सेवाएं भी प्रभावित होंगी। एक ओर जहाँ भारतीय शहरों में निजी वाहनों की संख्या कम करने के प्रयास हो रहे हैं, ये स्थिति बेहद प्रतिकूल असर डालेगी क्योंकि अब निजी वाहनों की संख्या बढ़ेगी। आने वाले दिनों में परिवहन पैटर्न में आने वाले स्थायी बदलाव को समझने की ज़रूरत है और उसके लिए उचित रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।
"एक ऐसे वक़्त में जब भारतीय शहरों में निजी वाहनों की संख्या कम करने के प्रयास हो रहे हैं, ये स्थिति बेहद प्रतिकूल असर डालेगी क्योंकि अब निजी मोटर वाहनों की संख्या बढ़ेगी। "
महामारी से लोगों की धारणाओं और व्यवहार में बदलाव आ रहे हैं जो संभावित शहरी माल परिवहन मांग को भी प्रभावित करेगा। किराने की दुकानों, बाज़ारों आदि जैसे भीड़ भाड़ वाली जगहों पर संक्रमण का खतरा है। यह लोगों में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के ज़रिए मांग को बढ़ावा दे सकता है। इन तरीकों में लोगों के संपर्क में आने का खतरा कम है। चूंकि इन सेवाओं का वितरण मुख्य रूप से हल्के मालवाहक वाहनों (एलसीवी) और दोपहिया वाहनों से पूरा होता है, माल की मांग में वृद्धि से भीड़, सड़क सुरक्षा और प्रदूषण जैसे कई समस्याएं बढ़ेंगी, जो उन्हें कम करने के ध्येय के प्रतिकूल साबित होंगी।
ऑनलाइन किराने की खरीदारी में वृद्धि हुई है, लेकिन निकट भविष्य में होटलों से तैयार भोज्य पदार्थों की वितरण सेवाओं की मांग में कमी आ सकती हैं। हालांकि, ऑनलाइन लेन-देन में वृद्धि से यात्री परिवहन की मांग कम हो सकती है। कई संगठनों ने अपने घर से ही काम करने जैसे तरीके अपनाए हैं जिससे परिवहन सेवा की मांग में कमी आएगी और सड़कों पर भीड़-भाड़ भी कम होगी। लेकिन फिर भी समग्र पर्यावरणीय प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि बढ़ी हुई मांग और कतिपय कारणों से कम मांग एक दूसरे को कैसे प्रभावित करते हैं। इस लिहाज़ से वाहनों में उपयोग किया जाने वाला ईंधन भी काफी अहम साबित होगा।
" ऑनलाइन किराने की खरीदारी में वृद्धि और वर्क फ्रॉम होम से परिवहन सेवा की मांग में कमी आएगी और सड़को पर भीड़-भाड़ भी कम होगी। "
कुछ परिवहन विशेषज्ञ इस मूल्यांकन से सहमत नहीं है क्योंकि मुख्य रूप से निम्न-और मध्यम आय वर्ग के अधिकांश भारतीय यात्रियों के लिए अनेक विकल्प उपलब्ध नहीं होते हैं। वे कई बार भीड़ के चलते एक दूसरे से उचित दूरी नहीं बना पाने और इस वजह से अपनी जान को जोख़िम में डालते हुए भी बसों और ट्रेनों जैसे सार्वजानिक माध्यमों से यात्रा करते हैं।
कोविड-19 के बाद यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा कि सड़क परिवहन से जुड़े नकारात्मक परिणाम और ना बढ़ जाएं और इसके लिए कई कदम बेहद सक्रियता से उठाने होंगे। नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए बसों, मेट्रो तथा रेल सेवाओं को और सुविधाजनक बनाने और सार्वजनिक परिवहन की सुरक्षा और पहुंच को सुनिश्चित करना आवश्यक होगा। निजी वाहनों के उपयोग में वृद्धि को रोकने के लिए गैर-मोटर चालित परिवहन को बढ़ावा देना आवश्यक है। साइकिल चलाने और पैदल चलने की सुविधाओं के साथ ही लोगों को इसे अपनाने के लिए जागरूक करना होगा। सड़कों पर ट्रैफिक और निजी वाहनों को कम करने के लिए सार्वजनिक वाहनों और गैर-मोटर चालित परिवहन के बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा।
" सड़कों पर भीड़ और निजी वाहनों को कम करने के लिए सार्वजनिक वाहनों और गैर-मोटर चालित परिवहन बुनियादी ढांचे में निवेश करना होगा। "
यात्री और माल ढुलाई परिवहन में होने वाले ये परिवर्तन ऊर्जा की मांग और वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं। ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन का प्रभाव इन वाहनों में प्रयुक्त टेक्नोलॉजी पर भी निर्भर करेगा। इसलिए स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए निर्धारित की जाने वाली नीतियां लम्बे समय तक इन्हें स्थायी रखने में महत्वपूर्ण साबित होंगी।
महामारी के परिवहन पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार की लघु और दीर्घकालिक नीतियां परिवहन समस्याओं के समाधान के लिए क्या परिवर्तन ला पाएंगी । इसके चलते सरकारी और निजी क्षेत्रों, दोनों का ही योगदान अपेक्षित होगा।
सभी आय वर्गों तथा विभिन्न आयु के लोगों के लिए साइकिल और पदयात्रा जैसे परिवहन साधनों को बढ़ावा देना एक बहुत ही लाभदायक नीति है। यात्रा के यह माध्यम न केवल स्वास्थ्य कारणों से बल्कि वायु प्रदूषण को काम करने में सहायक हैं। हमारे शहरों में दफ्तरों और कारोबारी क्षेत्रों में जाने की यात्रा दूरी सामान्यतः पांच किलो मीटर से कम होती है; अधिकतर यात्रा की दूरी भी आठ या दस किलोमीटर में समाप्त हो जाती है। यूरोपीय देशों में साइकिल का प्रयोग हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है तथा विभिन्न आय वर्गों और उम्र के लोगों ने साइकिल का प्रयोग आरंभ किया है। इससे पता चलता है कि कम दूरी के लिए साइकिलें और पदयात्रा आम प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की जगह ले सकते हैं। हालांकि इसका वाहन शेयरिंग पर क्या असर पड़ेगा, यह स्पष्ट नहीं है। कुछ शहरों में कोविड-19 के बाद कारपूलिंग की प्रवृति बढ़ी हुई दिखाई पड़ती है। शहरी परिवहन परिदृश्य में निकट भविष्य में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है लेकिन इन बदलावों से जुड़े नकारात्मक नतीजों को कम करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की गुंजाइश और पहल अभी बनी हुई है।
" कम दूरी के लिए साइकिलें और पदयात्रा आम प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की जगह ले सकते हैं। कुछ शहरों में कोविड-19 के बाद कारपूलिंग की प्रवृति बढ़ी हुई दिखाई पड़ती है। शहरी परिवहन से जुड़े नकारात्मक नतीजों को कम करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप की गुंजाइश और पहल अभी बनी हुई है। "
यात्रियों के तौर-तरीकों में आने वाले अपेक्षित बदलावों को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि कोविड -19 संकट सड़क परिवहन क्षेत्र से जुड़े नकारात्मक परिणामों को और ज्यादा ना बढ़ा दे। हमारा उद्देश्य सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित और सुलभ बनाना और सड़क पर निजी वाहनों की बड़ी बढ़ोत्तरी को रोकना होना चाहिए। श्रमिकों की आवाजाही सुनिश्चित करके सार्वजनिक परिवहन आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है। खासकर उन श्रमिकों के लिए ये बेहद अहम होता है जिनकी वैकल्पिक साधनों तक पहुंच नहीं है। गैर-मोटर चालित परिवहन को बढ़ावा देना कई यात्रियों के लिए वैकल्पिक यात्रा का विकल्प प्रदान करेगा। शहरों में अगर स्वच्छ तकनीकों से चलने वाले वाहनों पर जोर दिया जाए तो सड़कों पर शहरी माल-ढुलाई के लिए चलने वाले वाहनों के दुष्प्रभाव को कुछ हद तक काबू में किया जा सकता है।
सार्वजनिक परिवहन के लिए कई तरह के सुरक्षा उपायों को अपनाया जा सकता है।
- इसमें बसों, ट्रेन के डिब्बों, ऑफिसों और डिपो का समय-समय पर मानक प्रक्रियाओं के तहत कीटाणुशोधन करना शामिल हो सकता है।
- इसके अनुपालन के लिए एक प्रमाणन प्रणाली भी बनाई जा सकती है।
- बस सेवाओं की मांग हमेशा आपूर्ति से अधिक रही है। यह समय सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के फंडों का इस्तेमाल कर आवश्यकतानुसार अतिरिक्त बसें उपलब्ध कराने का है।
- इसी तरह, मेट्रो रेल की क्षमता उन मार्गों पर बढ़ाई जानी चाहिए, जहां आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक है।
- इंटेलीजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम्स के जरिए यात्रियों को भीड़ और यातायात से जुड़ी जानकारी देकर उनकी यात्रा को सुगम बनाया जा सकता है।
- इसके अलावा ऑनलाइन टिकटिंग और शहर भर में स्वचालित टिकट बिक्री पॉइंट्स लगाकर संपर्करहित टिकट प्रणाली को बढ़ावा दिया जा सकता है जिससे लोग एक दूसरे से सुरक्षित दूरी बनाकर यात्रा करने के नए तौर-तरीक़े सीख सकेंगे।
- साइकिल चलाने वालों के लिए सड़कों पर जगह बनायी जा सकती है।
- पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथों को चौड़ा करना तथा उन पर अनधिकृत अतिक्रमण को नियंत्रित करना आवश्यक है।
- हमारे शहरों में बुजुर्गों और विकलांग लोगों के लिए पर्याप्त यात्रा सुविधाओं का अभाव है। एक अच्छी और सुविधाजनक यात्रा प्रणाली में सभी वर्गों विशेषकर बुजुर्गों, विकलांग और अल्प आय के लोगों के लिए पर्याप्त सुविधाओं में निवेश अत्यंत आवश्यक है।